Posts

Showing posts from September, 2016

Ganesh Chalisa in hindi

Image
श्री गणेश चालीसा  दोहा  जय गणपति सदगुण सदन, कवी वारा बदन कृपाल,  विघ्न हैरान मंगल करना, जय जय गिरिजा लाल।  जय जय गणपति गण राजू, मंगल भरना करना शुभ  कज्जु, जय गजबदन सदन सुखदाता, विश्व विनायका बुद्धि विधाता ।  वक्र तुण्ड शुचि शुण्ड सुहावना, तिलक त्रिपुंड भाला मन भावना,  राजता मणि मुक्तना उर माला, सवर्ण मुकुटा शिरा नयना विशाला ।  पुस्तक पाणि कुठार त्रिशूलं । मोदक भोग सुगन्धित फूलं ॥ सुन्दर पीताम्बर तन साजित । चरण पादुका मुनि मन राजित ॥ धनि शिवसुवन षडानन भ्राता । गौरी ललन विश्वविख्याता ॥ ऋद्घिसिद्घि तव चंवर सुधारे । मूषक वाहन सोहत द्घारे ॥ कहौ जन्म शुभकथा तुम्हारी । अति शुचि पावन मंगलकारी ॥ एक समय गिरिराज कुमारी । पुत्र हेतु तप कीन्हो भारी ॥ भयो यज्ञ जब पूर्ण अनूपा । तब पहुंच्यो तुम धरि द्घिज रुपा ॥ अतिथि जानि कै गौरि सुखारी । बहुविधि सेवा करी तुम्हारी ॥ अति प्रसन्न है तुम वर दीन्हा । मातु पुत्र हित जो तप कीन्हा ॥ मिलहि पुत्र तुहि, बुद्घि विशाला । बिना गर्भ धारण, यहि काला ॥ गणनायक, गुण ज्ञान निधाना । पूजित प्रथम, रुप भगवाना ॥ अस कहि अन्तर्धान रुप है । पलना पर बालक स्वरुप है ॥ बनि शिशु, रुद

Shri Hanuman ji ki Aarti

Image
आरती  हनुमान जी की  आरती कीजे हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की। जाके बल से गिरिवर कांपे, रोग दोष जाके निकट न झांके। अंजनी पुत्र महा बलदाई, संतन के प्रभु सदा सहाई। दे वीरा रघुनाथ पठाये, लंका जारि सिया सुधि लाई। आरती कीजे हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की। लंका सी कोट समुद्र सी खाई, जात पवन सुत बार न लाई। लंका जारि असुर सब मारे, राजा राम के काज संवारे। आरती कीजे हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की। लक्ष्मण मूर्छित परे धरनि पे, आनि संजीवन प्राण उबारे। पैठि पाताल तोरि यम कारे, अहिरावन की भुजा उखारे। आरती कीजे हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की। बाएं भुजा सब असुर संहारे, दाहिनी भुजा सब सन्त उबारे। आरती करत सकल सुर नर नारी, जय जय जय हनुमान उचारी। आरती कीजे हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की। कंचन थार कपूर की बाती, आरती करत अंजनी माई। जो हनुमानजी की आरती गावै, बसि बैकुण्ठ अमर फल पावै। लंका विध्वंस किसो रघुराई, तुलसीदस स्वामी कीर्ति गाई। आरती कीजे हनुमान लला की, दुष्ट दलन रघुनाथ कला की। बोलो सिया पति राम चन्द्र की जय  Hanuman ji ka mantra 

Shri Hanuman Chalisa

Image
हनुमान चालीसा  दोहा  श्री गुरु चरण सरज राज , निज मनु मुकुर सुधारे | बरनौ रघुबर बिमल जासु , जो धयक फल चारे || बुधिहिएँ तनु जानके , सुमेराव पवन -कुमार | बल बूढी विद्या देहु मोहे , हरहु कलेस बिकार || चोपाई  जय हनुमान ज्ञान गुण सागर | जय कपिसे तहु लोक उजागर || राम दूत अतुलित बल धामा | अनजानी पुत्र पवन सूत नामा || महाबीर बिक्रम बज्रगी | कुमति निवास सुमति के संगी || कंचन बरन बिराज सुबेसा | कण कुंडल कुंचित केसा || हात वज्र औ दहेज बिराजे | कंधे मुज जनेऊ सजी || संकर सुवन केसरीनंदन | तेज प्रताप महा जग बंधन || विद्यावान गुने आती चतुर | राम काज कैबे को आतुर || प्रभु चरित सुनिबे को रसिया | राम लखन सीता मान बसिया || सुषम रूप धरी सियाही दिखावा | बिकट रूप धरी लंक जरावा || भीम रूप धरी असुर सहरइ | रामचंद्र के काज सवारे || लाये संजीवन लखन जियाये | श्रीरघुवीर हर्षा उरे लाये || रघुपति किन्हें बहुत बड़ाई | तुम मम प्रिये भारत सम भाई || सहरत बदन तुमर्हू जस गावे | आस कही श्रीपति कान्त लगावे || संकदीक भ्रमधि मुनीसा | नारद सरद सहित अहिसा || जम कुबेर दिगपाल जहा थी | कवी कोविद कही सके कहा थी || तुम उपकार सुघुव कह

Shri Shiv Chalisa

Image
शिव चालीसा  ॥दोहा॥ जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल मूल सुजान। कहत अयोध्यादास तुम, देहु अभय वरदान॥ ॥चौपाई॥ जय गिरिजा पति दीन दयाला। सदा करत सन्तन प्रतिपाला॥ भाल चन्द्रमा सोहत नीके। कानन कुण्डल नागफनी के॥ अंग गौर शिर गंग बहाये। मुण्डमाल तन क्षार लगाए॥ वस्त्र खाल बाघम्बर सोहे। छवि को देखि नाग मन मोहे॥ मैना मातु की हवे दुलारी। बाम अंग सोहत छवि न्यारी॥ कर त्रिशूल सोहत छवि भारी। करत सदा शत्रुन क्षयकारी॥ नन्दि गणेश सोहै तहँ कैसे। सागर मध्य कमल हैं जैसे॥ कार्तिक श्याम और गणराऊ। या छवि को कहि जात न काऊ॥ देवन जबहीं जाय पुकारा। तब ही दुख प्रभु आप निवारा॥ किया उपद्रव तारक भारी। देवन सब मिलि तुमहिं जुहारी॥ तुरत षडानन आप पठायउ। लवनिमेष महँ मारि गिरायउ॥ आप जलंधर असुर संहारा। सुयश तुम्हार विदित संसारा॥ त्रिपुरासुर सन युद्ध मचाई। सबहिं कृपा कर लीन बचाई॥ किया तपहिं भागीरथ भारी। पुरब प्रतिज्ञा तासु पुरारी॥ दानिन महँ तुम सम कोउ नाहीं। सेवक स्तुति करत सदाहीं॥ वेद माहि महिमा तुम गाई। अकथ अनादि भेद नहिं पाई॥ प्रकटी उदधि मंथन में ज्वाला। जरत सुरासुर भए विहाला॥ कीन्ही दया तहं करी सहाई। नीलकण्ठ तब नाम कहाई॥ पूजन राम

Shri Shiv ji ki Aarti

Image
श्री शिव शंकर जी की आरती जय शिव ओंकारा जय शिव ओंकारा, ॐ जय शिव ओंकारा । ब्रह्मा, विष्णु, सदाशिव, अर्द्धांगी धारा ॥ ॐ जय शिव ओंकारा एकानन चतुरानन पंचानन राजे । हंसासन गरूड़ासन वृषवाहन साजे ॥ ॐ जय शिव ओंकारा दो भुज चार चतुर्भुज दसभुज अति सोहे । त्रिगुण रूप निरखते त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव ओंकारा अक्षमाला वनमाला मुण्डमाला धारी । त्रिपुरारी कंसारी कर माला धारी ॥ ॐ जय शिव ओंकारा श्वेतांबर पीतांबर बाघंबर अंगे । सनकादिक गरुणादिक भूतादिक संगे ॥ ॐ जय शिव ओंकारा कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूलधारी । सुखकारी दुखहारी जगपालन कारी ॥ ॐ जय शिव ओंकारा ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका । प्रणवाक्षर में शोभित ये तीनों एका ॥ ॐ जय शिव ओंकारा लक्ष्मी व सावित्री पार्वती संगा । पार्वती अर्द्धांगी, शिवलहरी गंगा ॥ ॐ जय शिव ओंकारा पर्वत सोहैं पार्वती, शंकर कैलासा । भांग धतूर का भोजन, भस्मी में वासा ॥ ॐ जय शिव ओंकारा जटा में गंग बहत है, गल मुण्डन माला । शेष नाग लिपटावत, ओढ़त मृगछाला ॥ ॐ जय शिव ओंकारा काशी में विराजे विश्वनाथ, नंदी ब्रह्मचारी । नित उठ दर्शन पावत, महिमा अति भारी ॥ ॐ जय शिव ओंकारा त्रिगुणस्वामी जी क

Shri Surya Aarti

Image
आरती श्री सूर्य जी  जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन। त्रिभुवन - तिमिर - निकन्दन, भक्त-हृदय-चन्दन॥ जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन। सप्त-अश्वरथ राजित, एक चक्रधारी। दु:खहारी, सुखकारी, मानस-मल-हारी॥ जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन। सुर - मुनि - भूसुर - वन्दित, विमल विभवशाली। अघ-दल-दलन दिवाकर, दिव्य किरण माली॥ जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन। सकल - सुकर्म - प्रसविता, सविता शुभकारी। विश्व-विलोचन मोचन, भव-बन्धन भारी॥ जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन। कमल-समूह विकासक, नाशक त्रय तापा। सेवत साहज हरत अति मनसिज-संतापा॥ जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन। नेत्र-व्याधि हर सुरवर, भू-पीड़ा-हारी। वृष्टि विमोचन संतत, परहित व्रतधारी॥ जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन। सूर्यदेव करुणाकर, अब करुणा कीजै।  हर अज्ञान-मोह सब, तत्त्वज्ञान दीजै॥ जय कश्यप-नन्दन, ॐ जय अदिति नन्दन। आरती श्री सूर्य जी समाप्तम  Surya Chalisa in Hindi

Shri Surya Chalisa

Image
श्री सूर्य देव चालीसा ॥दोहा॥ कनक बदन कुण्डल मकर, मुक्ता माला अङ्ग। पद्मासन स्थित ध्याइए, शंख चक्र के सङ्ग॥ ॥चौपाई॥ जय सविता जय जयति दिवाकर!। सहस्रांशु! सप्ताश्व तिमिरहर॥ भानु! पतंग! मरीची! भास्कर!। सविता हंस! सुनूर विभाकर॥ विवस्वान! आदित्य! विकर्तन। मार्तण्ड हरिरूप विरोचन॥ अम्बरमणि! खग! रवि कहलाते। वेद हिरण्यगर्भ कह गाते॥ सहस्रांशु प्रद्योतन, कहिकहि। मुनिगन होत प्रसन्न मोदलहि॥ अरुण सदृश सारथी मनोहर। हांकत हय साता चढ़ि रथ पर॥ मंडल की महिमा अति न्यारी। तेज रूप केरी बलिहारी॥ उच्चैःश्रवा सदृश हय जोते। देखि पुरन्दर लज्जित होते॥ मित्र मरीचि भानु अरुण भास्कर। सविता सूर्य अर्क खग कलिकर॥ पूषा रवि आदित्य नाम लै। हिरण्यगर्भाय नमः कहिकै॥ द्वादस नाम प्रेम सों गावैं। मस्तक बारह बार नवावैं॥ चार पदारथ जन सो पावै। दुःख दारिद्र अघ पुंज नसावै॥ नमस्कार को चमत्कार यह। विधि हरिहर को कृपासार यह॥ सेवै भानु तुमहिं मन लाई। अष्टसिद्धि नवनिधि तेहिं पाई॥ बारह नाम उच्चारन करते। सहस जनम के पातक टरते॥ उपाख्यान जो करते तवजन। रिपु सों जमलहते सोतेहि छन॥ धन सुत जुत परिवार बढ़तु है। प्रबल मोह को फंद कटतु है॥ अर्क शीश को रक

Shani Aarti

Image
श्री शनि देव जी आरती  जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी, सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी, जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी ॥  सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी,  श्याम अंक वक्र दृष्ट चतुर्भुजा धारी, नीलांबर धार नाथ गज की अवसारी, जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी ॥  सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी,  क्रीट मुकुट शीश रजित दिपत है लिलारी, मुक्तन की माला गले शोभित बलिहारी, जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी ॥  सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी,  मोदक मिष्ठान पान चढ़त है सुपारी, लोहा तिल तेल उड़द महिषी अति प्यारी, जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी ॥  सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी,  दे दनुज ऋषि मुनि सुमिरत नर नारी, विश्वनाथ धरत ध्यान शरण हैं तुम्हारी, जय जय श्री शनिदेव भक्तन हितकारी ॥  सूरज के पुत्र प्रभु छाया महतारी, शनि  जी का मंत्र:-  ॐ शं शनिश्चराय नमः श्री शनि देव जी आरती समाप्तम  श्री शनि देव जी की आरती 

Shani Chalisa

Image
श्री शनि चालीसा ॥ दोहा ॥ जय गणेश गिरिजा सुवन, मंगल करण कृपाल । दीनन के दुःख दूर करि , कीजै नाथ निहाल ॥॥ जय जय श्री शनिदेव प्रभु , सुनहु विनय महाराज । करहु कृपा हे रवि तनय , राखहु जन की लाज ॥॥ जयति जयति शनिदेव दयाला । करत सदा भक्तन प्रतिपाला ॥ चारि भुजा, तनु श्याम विराजै । माथे रतन मुकुट छवि छाजै ॥ परम विशाल मनोहर भाला । टेढ़ी दृष्टि भृकुटि विकराला ॥ कुण्डल श्रवन चमाचम चमके । हिये माल मुक्तन मणि दमकै ॥ कर में गदा त्रिशूल कुठारा । पल बिच करैं अरिहिं संहारा ॥ पिंगल, कृष्णो, छाया, नन्दन । यम, कोणस्थ, रौद्र, दुःख भंजन ॥ सौरी, मन्द शनी दश नामा । भानु पुत्र पूजहिं सब कामा ॥ जापर प्रभु प्रसन्न हवैं जाहीं । रंकहुं राव करैं क्षण माहीं ॥ पर्वतहू तृण होइ निहारत । तृणहू को पर्वत करि डारत ॥ राज मिलत वन रामहिं दीन्हयो । कैकेइहुँ की मति हरि लीन्हयो ॥ वनहुं में मृग कपट दिखाई । मातु जानकी गई चुराई ॥ लषणहिं शक्ति विकल करिडारा । मचिगा दल में हाहाकारा ॥ रावण की गति-मति बौराई । रामचन्द्र सों बैर बढ़ाई ॥ दियो कीट करि कंचन लंका । बजि बजरंग बीर की डंका ॥ नृप विक्रम पर तुहि पगु धारा । चित्र मयूर निगलि गै हारा ॥

Mahalaxmi Aarti

Image
महालक्ष्मी जी की आरती  महालक्ष्मी नमस्तुभ्यं, नमस्तुभ्यं सुरेश्र्वरी | हरिप्रिये नमस्तुभ्यं, नमस्तुभ्यं दयानिधे ॥ ॐ जय लक्ष्मी माता मैया जय लक्ष्मी माता | तुमको निसदिन सेवत, हर विष्णु विधाता ॥ ॐ जय लक्ष्मी माता.... उमा ,रमा,ब्रम्हाणी, तुम जग की माता | सूर्य चद्रंमा ध्यावत, नारद ऋषि गाता ॥ ॐ जय लक्ष्मी माता.... दुर्गारुप निरंजन, सुख संपत्ति दाता | जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि सिद्धी धन पाता ॥ ॐ जय लक्ष्मी माता.... तुम ही पाताल निवासनी, तुम ही शुभदाता | कर्मप्रभाव प्रकाशनी, भवनिधि की त्राता ॥ ॐ जय लक्ष्मी माता.... जिस घर तुम रहती हो, ताँहि में हैं सद् गुण आता| सब सभंव हो जाता, मन नहीं घबराता॥ ॐ जय लक्ष्मी माता.... तुम बिन यज्ञ ना होता, वस्त्र न कोई पाता | खान पान का वैभव, सब तुमसे आता ॥ ॐ जय लक्ष्मी माता.... शुभ गुण मंदिर सुंदर क्षीरनिधि जाता| रत्न चतुर्दश तुम बिन ,कोई नहीं पाता ॥ ॐ जय लक्ष्मी माता.... महालक्ष्मी जी की आरती ,जो कोई नर गाता | उँर आंनद समाा,पाप उतर जाता ॥ ॐ जय लक्ष्मी माता.... स्थिर चर जगत बचावै ,कर्म प्रेर ल्याता | रामप्रताप मैया जी की शुभ दृष्टि पाता ॥ ॐ जय लक्ष्मी माता...

Pitar Aarti

Image
श्री पितर जी की आरती जय जय पितर महाराज, मैं शरण पड़यों हूँ थारी। शरण पड़यो हूँ थारी बाबा, शरण पड़यो हूँ थारी।। आप ही रक्षक आप ही दाता, आप ही खेवनहारे। मैं मूरख हूँ कछु नहिं जाणूं, आप ही हो रखवारे।। जय।। आप खड़े हैं हरदम हर घड़ी, करने मेरी रखवारी। हम सब जन हैं शरण आपकी, है ये अरज गुजारी।। जय।। देश और परदेश सब जगह, आप ही करो सहाई। काम पड़े पर नाम आपको, लगे बहुत सुखदाई।। जय।। भक्त सभी हैं शरण आपकी, अपने सहित परिवार। रक्षा करो आप ही सबकी, रटूँ मैं बारम्बार।। जय।। श्री पितर जी की आरती समाप्तम 

Pitar Chalisa

Image
श्री पितर चालीसा  || दोहा || हे पितरेश्वर आपको दे दियो आशीर्वाद, चरणाशीश नवा दियो रखदो सिर पर हाथ। सबसे पहले गणपत पाछे घर का देव मनावा जी। हे पितरेश्वर दया राखियो, करियो मन की चाया जी।। || चौपाई || पितरेश्वर करो मार्ग उजागर, चरण रज की मुक्ति सागर। परम उपकार पित्तरेश्वर कीन्हा, मनुष्य योणि में जन्म दीन्हा। मातृ-पितृ देव मन जो भावे, सोई अमित जीवन फल पावे। जै-जै-जै पित्तर जी साईं, पितृ ऋण बिन मुक्ति नाहिं। चारों ओर प्रताप तुम्हारा, संकट में तेरा ही सहारा। नारायण आधार सृष्टि का, पित्तरजी अंश उसी दृष्टि का। प्रथम पूजन प्रभु आज्ञा सुनाते, भाग्य द्वार आप ही खुलवाते। झुंझनू में दरबार है साजे, सब देवों संग आप विराजे। प्रसन्न होय मनवांछित फल दीन्हा, कुपित होय बुद्धि हर लीन्हा। पित्तर महिमा सबसे न्यारी, जिसका गुणगावे नर नारी। तीन मण्ड में आप बिराजे, बसु रुद्र आदित्य में साजे। नाथ सकल संपदा तुम्हारी, मैं सेवक समेत सुत नारी। छप्पन भोग नहीं हैं भाते, शुद्ध जल से ही तृप्त हो जाते। तुम्हारे भजन परम हितकारी, छोटे बड़े सभी अधिकारी। भानु उदय संग आप पुजावै, पांच अँजुलि जल रिझावे। ध्वज पताका मण्ड पे है सा