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Showing posts from May, 2018

Bhagwat Geeta Chapter -8

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भागवत गीता आठवां अध्याय  अर्जुन ने कहा, हे पुरुषोतम ! वह ब्रह्म क्या है ? अध्यात्म किसको कहते है? कर्म क्या है? अधिभूत क्या और अधिदैव क्या कहाता है? हे मधुसूदन ! अधियज्ञ केसा है और इस देह में अधिदेह कौन सा है? मरने के समय में स्थिर चित वाले लोग तुमको कैसे जान जाते है| श्री कृष्ण भगवान बोले जो अक्षर (अविनाशी) और परम (सबसे बड़ा श्रेष्ठ) है वही ब्रह्म है प्रत्येक वस्तु का स्वभाव अध्यात्म कहता है और समस्त चराचर की उत्पति करने वाला जो विसर्ग है वह कर्म है| जो देह आदि नाशवान वस्तु है वह अभिभूत कहाता है विश्व रूप जो विराट पुरुष है वह अधिदेव है और हे पुरुष है वह अधिदैव है और हे पुरुषों में श्रेष्ठ ! इस देह में मैं ही अधियज्ञ हूँ| जो अंतकाल में मेरा ध्यान करता हुआ और शरीर त्याग करता है वह निःसंदेह मेरे स्वरूप को पाता है| हे कुंती पुत्र ! अंत समय मनुष्य जिस वस्तु का स्मरण करता हुआ शरीर त्यगता है वह उसी को पाता है| इस कारण सदैव मुझ ही में मन और बुद्धि को लगाकर मेरा ही स्मरण करते हुए संग्राम करो, तुम निःसंदेह मुझको आ मिलेंगे| हे पार्थ ! अभ्यास रूप योग से युक्त हो दूसरी और न जाने वाले मन से सदा चिन्

Bhagawat Geeta Chapter-7

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भागवत गीता सातवां अध्याय श्री कृष्ण भगवान बोले हे पार्थ ! मुझमे मन लगा करके मेरे ही आश्रय होकर योगाभ्यास करते हुए मेरे स्वरूप का संशय रहित पूर्णज्ञान होगा सो सुनो विज्ञान के सहित वह पूर्णज्ञान मैं तुम्हें सुनाता हूँ जिसके जानने से तुमको इस लोक में कुछ जानना शेष न रहेगा| सहस्त्रों मनुष्यों में से कोई एक सिद्धि प्राप्ति के लिए यत्न करता है और उन यत्न करने वाले सिद्धों में से जो कोई भी मुझे ठीक से जान पाता है| पृथ्वी , जल, अग्नि, वायु, आकाश, मन, बुद्धि और अहंकार यह आठ प्रकार की मेरी प्रकृति (माया) है| इस प्रकृति को ( अपरा अचेतन अर्थात ) जड़ कहते है और हे महाबाहो इससे दूसरी प्रकृति चेतन है जिसने सम्पूर्ण जगत धारण किया है| इन्हीं दोनों प्रकृतिओं से सब प्राणी मात्र उतपन्न होते है ऐसा जानो यह प्रकृतियाँ हम ही से उत्पन्न हुई है| इस प्रकार जगत की उत्पति और प्रलय का कारण मैं ही हूँ| हे धनज्जय ! धागे में जिस प्रकार मणि पिरोई जाती है उसी भांति यह संसार मुझमे गुथा हुआ है, मुझसे परे और कुछ भी नहीं है| हे कुंती पुत्र ! जल में रस में मैं ही हूँ, चन्द्रमा और सूर्य में प्रभा मैं ही हूँ| सब वेदों में प्रण

Budh|Mercury Planet and remedies|Lal -Kitab

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बुध ग्रह - प्रभाव और उपाय बुध का पहले भाव में फल पहले घर में स्थित बुध जातक को दयालु, विनोदी और प्रशासनिक कौशल के साथ राजनयिक बनाता है। आमतौर पर ऐसा लम्बे समय तक जीता है, स्वार्थी हो जाता है तथा स्वभाव से नटखट होकर, मांशाहार और मदिरा पान की ओर आकृष्ट हो जाता है। जातक को सरकार से मदद मिलती है और उसकी बेटियां राजसी जीवन जीती हैं। जिस भाव में सूर्य बैठा है उस भाव से संबंधित रिश्तेदार बहुत कम समय में खूब पैसा कमा कर धनवान बन जाते हैं। स्वयं जातक के पास भी आमदनी के कई स्रोत होते हैं। यदि सूर्य बुध के साथ पहले भाव में हो अथवा बुध सूर्य के द्वारा देखा जाता हो तो जातक की पत्नी किसी अमीर और कुलीन परिवार से आएगी और अच्छे स्वभाव वाली होगी। ऐसा जातक मंगल से दुष्प्रभावी हो सकता है लेकिन इसे सूर्य से बुरे परिणाम नहीं मिलेंगे। राहु और केतु बुरे प्रभावी होंगे जो जातक के वंशजों और ससुराल वालों के लिए हानिकारक होंगे। पहले घर में स्थित बुध के कारण जातक दूसरों को प्रभावित करने की कला में माहिर होगा और वह किसी राजा की तरह जिएगा। पहले घर में बुध नीच का हो और चंद्रमा सातवें घर में हो तो जातक नशे के कारण अपन

Mangal planet and its remedies- mars remedies by lal-kitab

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मंगल ग्रह - प्रभाव और उपाय मंगल का पहले भाव में फल पहले घर में स्थित मंगल ग्रह जातक को उम्र के 28 वर्ष से अच्छे स्वभाव वाला, सच्चा और अमीर बनाता है। उसे सरकार से सहयोग मिलता है और वह अधिक प्रयास के बिना दुश्मनों पर जीत हासिल करता है। जातक शनि से संबंधित व्यवसायों जैसे लोहा, लकडी और मशीनरी आदि के माध्यम से खूब धनार्जन करता है और शनि से संबंधित रिश्तेदार जैसे, भतीजे, पोते, मामा/चाचा आदि के लिए ऐसे जातक से मिला सहज श्राप कभी बेकार नहीं जाता। शनि और मंगल की युति जातक को शारीरिक कष्ट देती है। उपाय: मुफ्त के उपहार या दान स्वीकार नहीं करना चाहिए। बुरे कामों और झूठ से बचें। संतों और फकीरों की संगति बहुत हानिकारक साबित होगी,अत: उनसे बचें। हाथीदांत की चीजें बहुत प्रतिकूल प्रभाव देंगी, अतः उनसे बचाव करें। मंगल का दूसरे भाव में फल दूसरे भाव में स्थित मंगल वाला जाता आमतौर पर अपने माता पिता की बडी संतान होता है अन्यथा उसके साथ बडे के जैसे बर्ताव किया जाएगा। लेकिन रहने एक छोटे भाई की तरह रहना और बर्ताव करना जातक के बहुत फायदेमंद और कई बुराइयों को अपने आप नष्ट करता है। इस घर का मंगल जातक को ससुराल से

Chander-Moon planet and remedies

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चन्द्र ग्रह के प्रभाव और लाल किताब के उपाय  लाल किताब हर भाव में चंद्रमा के स्थित होने पर जातक के जीवन में उसके क्‍या प्रभाव दिखाई पड़ते हैं। उसके क्‍या लक्षण हैं इसके साथ ही प्रस्‍तुत लेख में बताया गया है कि लाल किताब के अनुसार चंद्र के अच्‍छे प्रभावों को कैसे बढ़ाया जाए और खराब प्रभावों को कैसे कम किया जाए। पूरी कुण्‍डली का विश्‍लेषण करने के दौरान चंद्र की अवस्‍था के अतिरिक्‍त हमें चंद्रमा पर पड़ने वाली दृष्टियों, उसके साथ बैठे ग्रहों और दो या अधिक ग्रहों के मिलने से होने वाले मसनुई प्रभाव का भी अध्‍ययन करना होता है। यहां केवल सूर्य की भावों में स्थिति से होने वाले प्रभावों को स्‍पष्‍ट किया गया है। पुराणों के अनुसार देव और दानवों द्वारा किए गए सागर मंथन से जो 14 रत्न निकले थे उनमें से एक चंद्रमा भी थे जिन्हें भगवान शंकर ने अपने सिर पर धारण कर लिया था। चंद्र देवता हिंदू धर्म के अनेक देवतओं मे से एक हैं। उन्हें जल तत्व का देव कहा जाता है। चंद्रमा की महादशा दस वर्ष की होती है। चंद्रमा के अधिदेवता अप्‌ और प्रत्यधिदेवता उमा देवी हैं। श्रीमद् भागवत के अनुसार चंद्रदेव महर्षि अत्रि और अनुसूय

Bhagwat Geeta Chapter-6

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भागवत गीता छठवाँ अध्याय  श्री भगवानजी  अर्जुन ! जिसकी कर्मफल में आसक्ति नहीं और कर्मों को करता है वही सन्यासी और योगी है और जिसने हवनादि लौकिक कर्म छोड़ दिए है वह योगी नहीं है| हे अर्जुन! जिसको सन्यास कहते है उसी को कर्मयोग जानो, क्योँकि संकल्पो के त्यागे बिना कोइ भी योगी नहीं हो सकता जो मुनियोग प्राप्ति की इच्छा रखते है उनके लिए उसका साधन कर्म ही है और पूर्ण योगी होने पर उनका ज्ञान पूर्ण होने का साधन चित का समाधान है| जब मनुष्य विषय और कर्मों की आसक्ति से छूट गया और सम्पूर्ण वासनाओं को अपने त्याग दिया उसी समय वह योग रूढ़ कहा जाता है| आप ही अपना उद्वार कर और आत्मा को अवनत होने से रोके क्योकि मनुष्य आप ही अपना मित्र और शत्रु है जिसने विवेक से अपना मन स्वाधीन कर लिया वह स्वंय ही अपना शत्रु है| मनको जितने वाले शांत स्वभाव की आत्मा शीतोष्ण, सुख दुःख मान और अपमान इनके होने पर भी अत्यंत स्थिर रहता है| जिसने ज्ञान विज्ञान से अपने अंतकरण को तृप्त कर लिया है, जो निविरकर हो गया है, तथा जिसने अपने इन्द्रियों को वश में कर लिया है जो मिट्टी पत्थर और सोने को एक्स समझता है वही योगी कहाता है सुहृदय, मित

Surya planet and Remedies

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सूर्य ग्रह के प्रभाव और उपाय  पृथ्वी पर सम्पूर्ण जीवन सूर्य देव की कृपा से ही है। आकाश रोशनी, पृथ्वी को गर्मी, राजा, तपस्वी, सत्य-पालन, परोपकार और प्रकृति का स्वामी सूर्य है। यह पौराणिक ग्रह है जिसके होने से दिन होगा और न होने से रात्रि। सूर्य मानव शरीर में आत्मा का कारक है। सूर्य सदैव एक ही दिशा में चलता हुआ दिखाई देगा और इसका अंत अज्ञात है सूर्य देव कभी वक्री नही होते है। गुरू के ज्ञान एवं भाग्य की नींव सूर्य की ही देन है। हवा को हर सांस लेने वाले तक पहुंचाना गुरू का कार्य है। ग्रहों में  चन्द्र (ठंडक-सर्दी), मंगल (लाली) और बुध (खाली घेरा) सूर्य के आवष्यक अंग है। इन ग्रहों का सूर्य के साथ होना शुभ है। सूर्य से आत्मसिद्धि, पिता , मानसिक चिन्ता, मान-समान का चिार किया जाता है। सरकारी  कार्य, स्वयं का कार्य, शिक्षा, अस्थिरोग, हृदय की गति, दांयी आंख आदि का विचार किया जाता है। यदि सूर्य 1, 4, 5, 8, 9, 12 में हो तो वह जातक तेजस्वी, प्रतापी,शत्रुहन्ता होगा। अशुभ भावों में होने पर क्रोधी, अन्यों का अहित कर्ता, प्रकृति नीच होगी। केतु 1 या 6 में होगा तब सूर्य अत्यंत श्रेष्ठ फल देगा । मंगल