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Showing posts from October, 2018

Dhanteras Puja Katha | Date and Importance 2018

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धनतेरस पूजा विधि कथा तिथि और महत्त्व  हिन्दू धर्म ग्रंथों के अनुसार कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि के दिन भगवान धन्वन्तरि का जन्म हुआ था इसलिए इस तिथि को धनतेरस या धनत्रयोदशी के नाम से जाना जाता है। 2018 में यह तिथि  5 नवंबर को है|  धनतेरस को धनंत्रादशी (Dhantrayadashi) के नाम से भी जाना जाता है|  इस दिन धन और आरोग्य के लिए भगवान धन्वंतरि पूजे जाते हैं|  इस दिन कुबेर (Lord Kuber) की पूजा की जाती है|  इसी दिन भगवान धनवन्‍तरी का जन्‍म हुआ था जो कि समुन्‍द्र मंथन के दौरान अपने साथ अमृत का कलश और आयुर्वेद लेकर प्रकट हुए थे| यही वजह है कि भगवान धनवन्‍तरी को औषधी का जनक भी कहा जाता है| धनतेरस के दिन सोने-चांदी के बर्तन खरीदना भी शुभ माना जाता है| इस दिन धातु खरीदना भी बेहद शुभ माना जाता है| ऐसी मान्यता है कि भगवान धन्वंतरि की पूजा करने से किस्मत चमक जाती है|  यह त्यौहार दिवाली से 2 दिन पहले आता है। दिवाली से पहले धनतेरस पर पूजा का विशेष महत्व होता है। इस दिन भगवान धन्वंतरि के साथ-साथ कुबेर की भी पूजा की जाती है। धनतेरस पर भगवान यमराज के निमित्त दीपदान किया जाता है। ऐसी मान्यता है कि जो

Halloween Facts and Tricks

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Halloween Facts Halloween is celebrated in many countries around the world. It's most famous today as an evening when children 'trick or treat', knocking on doors in their neighborhood, dressed in costumes and hoping for treats. Halloween, or 'All Hallow's Evening' is a Western Christian yearly celebration that falls on October 31st, also known as the feast of All Saints. It's believed that it was influenced by European harvest festivals and festivals of the dead. The word Halloween was not used until the 1500s. Interesting Halloween Facts: Another name for trick-or-treating is guising. It evolved from a Celtic tradition. They would put food and treats out for spirits they believed roamed the streets during Samhain. Samhain was a festival to mark the end of the Celtic calendar each year. The Christian roots of trick-or-treating are different than the Celtic roots. They called it ‘souling' which was a medieval Christian ritual of going door to door, excha

Khatu Shyam ji ki katha | Baba Khatu Shyam Story in Hindi

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श्याम बाबा जी का कथा | Khatu Shyam Baba Story in Hindi आज हम आपको खाटू श्याम जी बाबा जी  के इतिहास के बारे में बताते है इनका प्रसिद्ध मंदिर राजस्थान के सीकर जिले में स्तिथ एक पवित्र मन्दिर है जो महाभारत काल में बना मन्दिर माना जाता है | खाटूश्यामजी को भगवान श्री कृष्ण का अवतार माना जाता है जिसकी देश के करोड़ो लोग पूजा करते है | खाटूश्यामजी मन्दिर में हर वक़्त भक्तो का ताँता लगा रहता है और विशेष रूप से होली से कुछ दिन पहले सीकर जिले में खाटूश्यामजी का विशाल मेला आयोजित होता है जिसमे राजस्थान सहित अन्य प्रदेशो के श्रुधालू भी बाबा के दर्शन करने आते है | खाटूश्यामजी की कहानी महाभारत काल से शुरू होती है जिस वक़्त उनका नाम बर्बरीक था | बर्बरीक , भीम का पौत्र और घटोत्कच का पुत्र था | बर्बरीक बचपन से ही बहुत वीर योद्धा था जिसमे अपनी माँ से युद्ध कला सीखी थी | भगवान शिव ने बर्बरीक से प्रस्सन होकर उसे तीन अचूक बाण दिए जिसकी वजह से बर्बरीक को “तीन बाण धारी ” कहा जाने लगा | उसके बाद अग्नि देव ने उन्हें एक तीर दिया जिससे वो तीनो लोको पर विजय प्राप्त कर सकता था | जब बर्बरीक को पता चला कि पांड्वो और कौ

Tulsi ji kaun thi - Who was Tulsi

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तुलसी कौन थी? तुलसी कौन थी? तुलसी(पौधा) पूर्व जन्म मे एक लड़की थी जिस का नाम वृंदा था, राक्षस कुल में उसका जन्म हुआ था बचपन से ही भगवान विष्णु की भक्त थी.बड़े ही प्रेम से भगवान की सेवा, पूजा किया करती थी.जब वह बड़ी हुई तो उनका विवाह राक्षस कुल में दानव राज जलंधर से हो गया। जलंधर समुद्र से उत्पन्न हुआ था. वृंदा बड़ी ही पतिव्रता स्त्री थी सदा अपने पति की सेवा किया करती थी. एक बार देवताओ और दानवों में युद्ध हुआ जब जलंधर युद्ध पर जाने लगे तो वृंदा ने कहा - स्वामी आप युद्ध पर जा रहे है आप जब तक युद्ध में रहेगे में पूजा में बैठ कर आपकी जीत के लिये अनुष्ठान करुगी,और जब तक आप वापस नहीं आ जाते, मैं अपना संकल्प नही छोडूगी। जलंधर तो युद्ध में चले गये,और वृंदा व्रत का संकल्प लेकर पूजा में बैठ गयी, उनके व्रत के प्रभाव से देवता भी जलंधर को ना जीत सके, सारे देवता जब हारने लगे तो विष्णु जी के पास गये।  सबने भगवान से प्रार्थना की तो भगवान कहने लगे कि – वृंदा मेरी परम भक्त है में उसके साथ छल नहीं कर सकता । फिर देवता बोले - भगवान दूसरा कोई उपाय भी तो नहीं है अब आप ही हमारी मदद कर सकते है। भगवान ने जलंधर

Diwali wishes 2018 | Diwali Quotes in Hindi

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Diwali Wishes 2018 - दीपावली कोट्स  इस साल दीपावली या दिवाली 7 Novemeber 2018 को आ रही है | आप सब को हमारी ओर से दीपावली की शुभकामनाएं|  दिवाली या हम दीपावली भी कहते है यह रोशनी का त्योहार हर वर्ष मनाया जाने वाला एक प्राचीन हिंदू त्योहार है| भारत के सबसे बड़े और प्रतिभाशाली त्योहारों में से एक है। कहा जाता है कि दीपावली या दिवाली के दिन अयोध्या के राजा राम अपने चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात लौटे थे।श्री राम के स्वागत में अयोध्यावासियों ने घी के दीपक जलाए। कार्तिक मास की सघन काली अमावस्या की वह रात्रि दीयों की रोशनी से जगमगा उठी। तब से आज तक भारतीय प्रति वर्ष यह प्रकाश-पर्व हर्ष व उल्लास से मनाते हैं। लोग अपने घरों, दुकानों आदि की सफाई का कार्य आरंभ कर देते हैं। बाज़ारों में गलियों को भी सुनहरी झंडियों से सजाया जाता है। दीपावली से पहले ही घर-मोहल्ले, बाज़ार सब साफ-सुथरे व सजे-धजे नज़र आते हैं। Deepawali Wishes 2018  जगमग जगमग दीप जल उठे, द्वार द्वार आए दीपावली। दीपावली के इस पावन अवसर पर आपको एवं आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनाएँ। दीवाली के इस मंगल अवसर पर, आप सभी की मनोकामना पूरी हों,

Where are 51 Shakti Peeth of Mata Rani

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51 माता के शक्ति पीठ कहा कहा है नवरात्री के शुभ अवसर पर माता के भक्तो के लिए माता के शक्ति पीठों वर्णन करते है| पहले हम सब माँ का जयकार लगाकर माँ को याद करते है और उनका धन्यवाद करते है| हिंदू धर्म में पुराणों का विशेष महत्‍व है। इन्‍हीं पुराणों में वर्णन है माता के शक्‍तिपीठों का भी।  पुराणों की ही मानें तो जहां-जहां देवी सती के अंग के टुकड़े, वस्‍त्र और गहने गिरे, वहां-वहां मां के शक्‍तिपीठ बन गए। ये शक्तिपीठ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में फैले हैं। देवी भागवत में 108 और देवी गीता में 72 शक्तिपीठों का जिक्र है। वहीं देवी पुराण में 51 शक्तिपीठ बताए गए हैं। आइए, जानें कहां-कहां हैं ये शक्‍ितपीठ। 1 . हिंगलाज शक्‍तिपीठ  कराची से 125 किमी उत्‍तर-पूर्व में स्‍थित है हिंगलाज शक्‍तिपीठ। पुराणों की मानें तो यहां माता का सिर गिरा था। इसकी शक्‍ति-कोटरी (भैरवी कोट्टवीशा) है।  2 . शर्कररे (करवीर) पाकिस्‍तान के ही कराची में सुक्‍कर स्‍टेशन के पास शर्कररे शक्‍तिपीट स्‍थित है। यहां माता की आंख गिरी थी।  3 . सु्गंधा-सुनंदा  बांग्‍लादेश के शिकारपुर में बरिसल से करीब 20 किमी दूर सोंध नदी है। इसी नदी के पास

Shakti Peeth Jwala Devi Mata Mandir

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शक्ति पीठ ज्वाला देवी का मंदिर| Shakti Peeth Jwala Devi Mata Mandir  ज्वाला देवी का मंदिर भी के 51 शक्तिपीठों में से एक है जो हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में कालीधार पहाड़ी के बीच बसा हुआ है । शक्तिपीठ वे जगह है जहा माता सती के अंग गिरे थे। शास्त्रों के अनुसार ज्वाला देवी में सती की जिह्वा (जीभ) गिरी थी। मान्यता है कि सभी शक्तिपीठों में देवी भगवान् शिव के साथ हमेशा निवास करती हैं। शक्तिपीठ में माता की आराधना करने से माता जल्दी प्रसन्न होती है। ज्वालामुखी मंदिर को ज्योता वाली का मंदिर और नगरकोट भी कहा जाता है। मंदिर की चोटी पर सोने की परत चढी हुई है | ज्वाला रूप में माता (ज्योत रूप में माता के दर्शन)  ज्वालादेवी मंदिर में सदियों से बिना तेल बाती के प्राकृतिक रूप से नौ ज्वालाएं जल रही हैं। नौ ज्वालाओं में प्रमुख ज्वाला माता जो चांदी के दीये के बीच स्थित है उसे महाकाली कहते हैं। अन्य आठ ज्वालाओं के रूप में मां अन्नपूर्णा, चण्डी, हिंगलाज, विध्यवासिनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका एवं अंजी देवी ज्वाला देवी मंदिर में निवास करती हैं। क्यों जलती रहती है ज्वाला माता में हमेशा ज्वाला : एक कथा

Jhandewala Mandir History | Timing | Location

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झंडेवाला मंदिर इतिहास| History of Jhandewala Mandir राजधानी दिल्ली के मध्य में स्थित झंडेवाला मंदिर झंडेवाली देवी को समर्पित एक सिद्धपीठ है । अपने धाार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व के कारण राज्य सरकार ने भी दिल्ली के प्रासिद्ध दर्शनीय स्थलों में इसे शामिल किया है । वर्ष भर बिना किसी भेदभाव के लाखों की संख्या में भक़्त लोग देश विदेश से दर्शन करने यहां आते हैं । नवरात्रों में यहां उमडती भक़्तजनों की भीड तो स्वयं में ही दर्शनीय बन जाती है । मंदिर में आने वाला प्रत्येक भक़्त यहां से मानसिक शांति और आनंद की अनुभूति लेकर ही जाता है । प्रत्येक भक़्त को आशीर्वाद के रूप में देवी का प्रसाद मिलता है । झंडेवाला मंदिर का धाार्मिक ही नही एतिहासिक महत्व भी है । झंडेवाला मंदिर का इतिहास 18वाीं सदी के उत्तरार्ध से प्रारंभ होता है । आज जिस स्थान पर मंदिर स्थित है उस समय यहां पर अरावली पर्वत श्रॄंखला की हरी भरी पहाडियाँ, घने वन और कलकल करते चश्में बहते थे । अनेक पशु पक्षियों का यह बसेरा था । इस शांत और रमणीय स्थान पर आसपास के निवासी सैर करने आया करते थे । ऐसे ही लोगों में चांदनी चौक के एक प्रसिद्ध कपडा व्यपारी श्र

Vijayadashami -Dussehra

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दशहरा अथवा विजयादशमी | Dussehra and Vijayadashami Celebration  दशहरा एक बहुत ही बड़ा और महत्वपूर्ण त्यौहार है अगर हिंदू कैलेंडर देखा जाए तो। दशहरा को विजयदशमी कहा जाता है इसका मतलब होता है- बुराई पर अच्छाई की जीत। हमारे समाज में रामायण के रावण को जलाकर बुराई का त्याग किया जाता है। Dussehra puja falls on 19th Oct 2018 दशहरा 10 दिन का त्यौहार है, और दशमा दिन जो होता है उसको दसवीं कहा जाता है जिस दिन दशहरा पूजा समाप्त होती है। हिंदू महीना के हिसाब से अश्विन मतलब की पूरी चांद का दिन भी इसी दिन होता है। दशहरा हर राज्य में अलग-अलग तरीके में मनाया जाता है जिसमें उनके अपने रीति-रिवाज शामिल होते हैं। पुरानी कहानियां के हिसाब से भगवान राम ने रावण से 10 दिन तक युद्ध लड़ा था, जिस में रावण की हार हुई थी। इसके बाद भगवान राम ने सीता मैया को छुड़ाकर लंका से वापस ले आए थे इसीलिए दशहरा मनाया जाता है। भगवान राम की जीत यह दर्शाता है कि हमेशा बुराई पर अच्छाई की जीत होती है और यह सत्य कभी झूठ लाया नहीं जा सकता। विजय दशमी 2018 पर ऐसे करें पूजन | How to do Puja in Vijayadashmai दशहरे के दिन सुबह दैनिक कर्म से