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Showing posts from February, 2017

Shri Satyanarayana Aarti

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श्री सत्यनारायण जी की आरती  जय लक्ष्मी रमण, स्वामी जय लक्ष्मी रमण  सत्यनारायण स्वामी, जन पातक हरना  जय लक्ष्मी रमण रतन जड़त सिंहासन, अद्भुत छवि राजे  नारद कहत निरंजन, घंटा धुन बजे  जय लक्ष्मी रमण प्रगट भए कलि कारण द्विज को दर्श दियो  बूढ़ों ब्राह्मण बनकर कंचन महल कियो  जय लक्ष्मी रमण दुर्बल भील कठारो इन पर कृपा करी  चंद्रचूड़ एक राजा जिनकी विपति हरी  जय लक्ष्मी रमण वैश्य मनोरथ पायो श्रद्धा तज दिनी  सो फल भोग्यो प्रभुजी फिर स्तुति कीनी  जय लक्ष्मी रमण भाव भक्ति के कारन छिन -छिन रूप धरयो  श्रद्धा धारण कीनी तिनको काज सरयो  जय लक्ष्मी रमण ग्वाल बाल संग राजा वन में भक्ति करी  मनवांछित फल दीन्हा दीनदयाल हरी  जय लक्ष्मी रमण चढ़त प्रसाद सवायो कदली फल मेवा  धूप दीप तुलसी से राजी सत्यदेव  जय लक्ष्मी रमण श्रीसत्यनारायण जी की आरती जो कोई न्र गावे  कहत शिवानंद स्वामी मनवांछित फल पावे  जय लक्ष्मी रमण श्री सत्यनारायण जी की आरती समाप्तम 

Shri Radha Krishna Aarti

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श्री राधा- कृष्णा जी की आरती  ॐ जय श्री राधा जय श्री कृष्णा श्री राधा कृष्णय नमः ॥  घूम घुमारो घामर सोहे जय श्री राधा  पट पीताम्बर मुनि मन मोहे जय श्री कृष्णा ।  जुगल प्रेम रस झम झम झमकै  श्री राधा कृष्णाय नमः ॥  राधा राधा कृष्णा कन्हैया जय श्री राधा  भव भव सागर पार लगैया जय श्री कृष्णा ।  मंगल मूरित मोक्ष करैया  श्री राधा कृष्णाय नमः ॥ श्री राधा- कृष्णा जी की आरती समाप्तम 

Amalki Ekadashi Vrat Katha

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आमलकी एकादशी व्रत कथा   फाल्गुन शुक्ल एकादशी  फाल्गुन माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी कहते हैं। आमलकी यानि आंवला को शस्त्रों में श्रेष्ठ स्थान प्राप्त है । विष्णु जी ने जब सृष्टि की रचना के लिए ब्रह्मा को जन्म दिया उसी समय उन्होंने आंवले के वृक्ष को जन्म दिया। आंवले को भगवान विष्णु ने आदि वृक्ष के रूप में प्रतिष्टित किया है । इसके हर अंग में ईश्वर का स्थान माना गया है। आमलकी एकादशी व्रत के पहले दिन व्रती को दशमी की रात्रि में एकादशी व्रत के साथ भगवान विष्णु का ध्यान करते हुए सोना चाहिए तथा आमलकी एकादशी के दिन सुबह स्नान करके भगवान विष्णु की प्रतिमा के समक्ष हाथ में तिल, कुश, मुद्रा और जल लेकर संकल्प करें कि मैं भगवान विष्णु की प्रसन्नता एवं मोक्ष की कामना से आमलकी एकादशी का व्रत रखता हूँ। मेरा यह व्रत सफलतापूर्वक पूरा हो इसके लिए श्रीहरि मुझे अपनी शरण में रखें। ततपश्चात 'मम कायिकवाचिकमानसिक सांसर्गिकपातकोपातकदुरित क्षयपूर्वक श्रुतिस्मृतिपुराणोक्त फल प्राप्तये श्री परम्मेश्वरप्रीति कामनाये आमलकी एकादशी व्रतमहं करिष्ये' इस मंत्र से संकल्प लेने के पश्चात षोडषोपचार सहि

Kunj Bihari ji ki Aarti

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कुंज बिहारी जी की आरती   आरती कुंज बिहारी की श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की  गले में बैजंती माला, बजावे मुरली मधुर बाला ।  श्रवण में कुण्डल झलकाला, नन्द के आनंद नंदलाला ॥  श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की गगन सम अंग कांति काली, राधिका चमक रही आली ।  लतन में ठाढे बनमाली भ्र्मर से अलक, कस्तूरी तिलक, चंद्र सी झलक  श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की  आरती कुंज बिहारी की श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की  कनकमय मोरे मुकुट बिलसै, देवता दरसन को तरसें।  गगन सों सुमन रासि बरसे, बजे मुरचग मधुर भिरदंग, ग्वालिन संग, अतुल रति गोप कुमारी की ॥  श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की आरती कुंज बिहारी की श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की  जहाँ ते प्रकट भई गंगा, कलुष कलि हारिणी श्रीगंगा।  स्मरन ते होत मोह भांग, बसी शिव शशि, जटाके बीज, हरे अध कीच, चरन छवि श्रीबनवारी की श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की आरती कुंज बिहारी की श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की  चमकती उज्जवल तट रेनू, बज रही वृदांवन बेनू चहूँ दिसि गोपि ग्वाल घेनू, हंसत मृदु मंद, चांदनी चंद, कटत भव फंद, टेर सुनु दीन भिखारी की ॥  श्री गिरिधर कृष्ण मुरारी की आरती कुंज बिहारी की श्री गिरिधर कृष्ण

Shree Balaji Aarti

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श्री बालाजी की आरती   ॐ जय हनुमत वीरा स्वामी जय हनुमत वीरा।  संकट मोचन स्वामी तुम हो रनधीरा॥  पवन - पुत्र अंजनी- सूत महिमा अति भारी।    दुःख दरिद्र मिटाओ, संकट छय हारी ॥  बल समय में तुमने रवि को भक्ष लियो। देवन स्तुति किन्हीं, तब ही छोड़ दियो ॥  कपि सुग्रीव राम संग मैत्री करवाई।  अभिमान बलि मिटायो, कीर्ति रही छाई ॥  जारी लक सीया ले आये वानर हर्षाय।  कारज कठिन सुधारे रधुवीर मन भये ॥  शक्ति लगी लक्ष्मण को भारी सोच भयो।  लाय सजीवन बूटी दुःख सब दूर कियो॥  रामहि ले अहिरावण, जब पटेल गयो ।  ताहि मारि प्रभु लाये, जय जयकार भयो॥  राजत महेंदीपुर में, दर्शन सुखकारी।  मंगल और शनिश्चर मेला है जारी॥  श्री बालाजी की आरती जो कोई नर गावे।  कहत इंद्रा हर्षित मन वांछित फल पावे ॥  श्री बालाजी की आरती   समाप्तम 

Vijaya Ekadashi Vrat Katha

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विजया एकादशी कथा  फाल्गुन कृष्ण एकादशी  धर्मराज युधिष्ठर बोले- हे जनार्दन! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का क्या नाम है तथा उसकी विधि क्या है? कृपा करके आप मुझे बताइए। श्री भगवान बोले हे राजन ! फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम विजया एकादशी है। इसके व्रत के प्रभाव से मनुष्य को विजय प्राप्त होती है। यह सब व्रतों से उत्तम व्रत है। इस विजय एकादशी का महात्म्य के श्रवण व पठन से समस्त पाप नाश को प्राप्त हो जाते हैं। एक समय देव ऋषि नारदजी ने जगत पिता ब्रहाजी से कहा- महाराज! आप मुझे से फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी विधान कहिए। ब्रह्माजी कहने लगे कि हे नारद ! विजया एकादशी का व्रत पुराने तथा नए पापों को नाश करने वाला है। इस विजया एकादशी की विधि मैं ने  आज तक किसी से भी नहीं कही।यह समस्त मनुष्यों को विजय प्रदान करती है। त्रेता युग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्री रामचंद्र जी को जब चौदह वर्ष का वनवास हो गया, तब वे श्री लक्ष्मण तथा सीताजी सहित पंचवटी  निवास करने लगे। वहाँ पर दुष्ट रावण ने जब सीताजी का हरण किया तब इस समाचार से श्री रामचंद्र जी तथा लक्ष्मण अत्यंत व्याकुल हुए और सीताजी

Shree Vishwakarma Aarti

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श्री विश्वर्कमा जी की आरती  जय श्री विश्वकर्मा प्रभु, जय श्री विश्वकर्मा । सकल सृष्टि के कर्ता, रक्षक स्तुति धर्मा ॥  आदि सृष्टि में विधि को श्रुति उपदेश दिया।  जीव मात्रा का जग में, ज्ञान विकास किया॥  ऋषि अंगिरा तप से, शांति नहीं पाई।  रोग ग्रस्त राजा ने जब आश्रय लीना ॥  संकट मोचन बनकर दूर दुख किना  जय श्री विश्वकर्मा....  जब रथकार दम्पति, तुम्हारी टेर करी।  सुनकर दीन प्रार्थना, विपत हरी सागरी ॥  एकानन चतुरानन, पंचानन राजे।  त्रिभुज चतुर्भुज दशभुज, सकल रूप सजे ॥  ध्यान धरे तब पद का, सकल सिद्दी आवे।  मन द्विविधा मिट जावे, अटल शक्ति पावे ॥  श्री विश्वकर्मा की आरती जो कोई गावे।  भजत गजानंद स्वामी, सुख सम्पति पावे ॥  जय श्री विश्वर्कमा समाप्तम 

Jaya Ekadashi Vrat Katha

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जया एकादशी व्रत कथा  माध शुक्ल एकादशी  धर्म राज युधिष्ठर बोले- हे भगवान! अपने माध के कृष्ण पक्ष की षटतिला एकादशी का अत्यंत सुंदर वर्णन किया। आप स्वदेज, अंडज, उदिभज और जरायुज चारों प्रकार के जीवों के उत्पन्न, पालन तथा नाश करने वाले हैं । अब आप कृपा करके माध शुक्ल एकादशी का वर्णन कीजिये। इसका क्या नाम है, इसके व्रत की क्या विधि है और इसमें कौन से देवता का पूजन किया जाता है? श्रीकृष्ण कहने लगे कि हे राजन! इस एकादशी का नाम 'जया एकादशी' है । इसका व्रत करने से मनुष्य बह्म हत्या आदि पापों से छूट कर मोक्ष को प्राप्त होता है तथा इसके प्रभाव से भूत, पिशाच आदि योनियों से मुक्त हो जाता है। इस व्रत को विधिपूर्वक करना चाहिए। अब मैं तुमसे पद्यपुराण में वर्णित इसकी महिमा की एक कथा सुनाता हूँ। देवराज इन्द्र स्वर्ग में राज करते थे और अन्य सब देवगण सुखपूर्वक स्वर्ग में रहते थे। एक समय इंद्र अपनी इच्छानुसार नंदन वन में अप्सराओं के साथ विहार कर रहे थे और गंधर्व गान कर रहे थे। उन गंधर्वो में प्रसिद्ध पुष्पदंत तथा उसकी कन्या पुष्पवती और चित्रसे धर्म राज युधिष्ठर बोले- हे भगवान! अपने माध के कृष्ण पक्ष

Gaumata ji ki Aarti

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गौमाता जी आरती  आरती श्री गैया मैया की, आरती हरनी विश्व धैया की ।  अर्थ काम सद्धर्म प्रदायिनी, अविचल अमल मुक्तिपादयिनि ॥  सुर मानवव सौभाग्यविधयिनी, प्यारी पूज्य नन्द छाया की ।  अखिल विश्व प्रतिपालिनी माता, मधुर अमिली दुग्धानां प्रदाता ॥  रोग शोक संकट परित्राता, भवसागर हित दृढ़ नैया की ।  आयु ओज आरोग्य विकाशिनी, दुःख दैन्य दारिदये विनाशनी ॥  शुष्मा सौख्य समृद्धि प्रकाशिनि, विमल विवेक बुद्धि दैया की ।  सेवक हो चाहे दुखदाई, सम पय सुधा पियावति माई ॥ शत्रु - मित्र सबको सुखदायी, स्नेह सवभाव विश्व जैया की ॥  गौमाता जी आरती समाप्तम 

Bhairav ji ki Aarti

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भैरव जी की आरती   जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा ।  जय काली और गौर देवी करात सेवा ॥  जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा ।  तुम्ही आप उद्धारक, दुःख सिंधु तारक ।  भक्तों के सुख कारक, भीषण वपु धारक ॥  जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा ।  वाहन श्रवण विराजत, कर त्रिशुल धारी ।  महिमा अमित तुम्हारी, जय जय भयहारी ॥  जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा ।  तुम बिन देवा पूजन, सफल नहीं होव ।  चौमुखा दीपक, दर्शक दुःख खोवे ॥  जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा ।  तेल चटकि दधि मिश्रित, भाषावलि तेरी ।  कृपा करिये भैरव करिए नहिं देरी ॥  जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा ।  पांव घुंघरू बाजत अरु डमरू जमकावत ।  बटुकनाथ बन बालकजन मन हरषावत ॥  जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा ।  बटुकनाथ की आरती जो कोई न्र गावे ।  कहे धरणीधर नर मनवांछित फल पावे ॥  जय भैरव देवा, प्रभु जय भैरव देवा ।  भैरव जी की आरती  समाप्तम 

Shree Bhagwat Aarti

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श्री भागवत जी आरती   भागवत भगवान की है आरती भागवत भगवान की है आरती पापियों को पाप से है तारती  ये अमर ग्रथ है मुक्ति पंथ  सन्मार्ग देखने वाला  बिगड़ी को बनने वाला   यह सुख करनी, यह दुःख हरनी  जगमंगल की है आरती  पापियों को पाप से है तारती  भागवत भगवान की है आरती श्री भागवत जी आरती  समाप्तम 

Shree Ramayan Aarti

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श्री रामायण जी की आरती  आरती श्री रामायण जी की , कीर्ति कलित ललित सिया-पि की ॥  गावत ब्रह्मादिक मुनि नारद, वाल्मीकि विज्ञानं विशारद ॥  सुक  सनकादि शेष अरु सारद , बरनी पवनसुत कीर्ति निकी ॥  आरती श्री रामायण जी की...  गावत वेद पुराण अष्टदश, छहों शास्त्र सब ग्रंथन को रस  ।  मुनिजन धन संतान को सरबस, सार अंश सम्मत सबहि की ॥  आरती श्री रामायण जी की...  गावत संतत शम्भू भवानी, अरु घटसंभव मुनि विज्ञानी ।   व्यास अदि कविबर्ज बखानीं, काकभुशुण्डि गरुड़ के ही की ॥  आरती श्री रामायण जी की...  कलिमल हरनी विषय रस फीकी, सुभग सिंगर मुक्ति जुबती की ।  दलन रोग भव भूरी अमी की, तात मात सब विधि तुलसी की ॥  आरती श्री रामायण जी की...  श्री रामायण जी की आरती समाप्तम