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Showing posts from January, 2017

Chintpurni Mata ji ki Aarti

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चिंतपूर्णी माता जी की आरती  चिंतपूर्णी चिंता दूर करनी जनन को तारो भोली माँ,  जनन को तारो भलो माँ काली डा पुत्र पवन दो घोडा,  सिंह पर भई असवार भोली माँ, चिंतपूर्णी चिंता दूर करो माँ...  एक हाथ खडग दूजे में खड़ा तीजे त्रिशूल संभालो, भोली माँ...  चौथा हाथ चक्कर गदा पांचवे छठे मुंडो की माला, भोली माँ...  सातवे में रुंड मुंड विदारे आठवे से असुर सहारो, भोली माँ...  चप्पे का बाग़ लगा अति सुन्दर बैठी  दीवान लगये, भोली माँ...  हरी ब्रह्मा तेरे भवन विराजे लाल चन्दो भेथी तान, भोली माँ...  औखी घाटी विकट पेंदा टेल बहे दरिया, भोली माँ... सुमन चरण ध्यानु जस गावे, भक्तां दी पज निभाओ  भोली माँ...  चिंतपूर्णी माता जी की आरती समाप्तम 

Kali Mata ji ki aarti

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काली माता जी की आरती  मंगल की सेवा सुन मेरी देवी, हाथ जोड़ तेरे द्वार खड़े ।  पैन सुपारी ध्वजा नारियल, ले ज्वाला तेरी भेंट करें ।।  सुन जगदम्बे कर न विलम्बे सन्तन के भंडार भरे ।  संतान प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे ॥  बुद्धि विधाता तू जगमाता, मेरा कारज सिद्ध करे ।  चरण कमल का लिया आसरा, शरण तुम्हारी आन परे ॥  जब जब पीर पड़े भक्तन पर तब तब आये सहाय  करे ।  सन्तन प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे ॥  बार बार ते सब जग मोहयो, तरुणी रूप अनूप धरे ।  माता  होकर पुत्र खिलावें, कही भार्या बन भोग करे ॥  सन्तन सुखदायी, सदा सहाई, सन्त खड़े जायका करें ।  संतान प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे ॥  ब्रह्मा, विष्णु, महेश फल लिए भेंट देन सब द्वार खड़े ।  अटल सिंहासन बैठी माता, सिर सोने का छत्र धरे ।  वार शनिचर कुंकुमवरणी, जब लुंकुड पर हुकुम कर ।  संतान प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली कल्याण करे ॥  खड्ग खप्पर त्रिशूल हाथ लिए, रक्तबीज कुं भस्म कर ।  शुम्भ- निशुम्भ क्षनहिं में मारे, महिषासुर को पकड़ धरे ॥  आदित वारी आदि भवानी, जन अपने को कष्ट हरे ।  संतान प्रतिपाली सदा खुशहाली, जय काली

Ahoi Mata ji ki Aarti

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अहोई माता जी की आरती  जय अहोई माता जय अहोई माता ।  तुमको निशदिन ध्यावत हरी विष्णु धाता ॥  जय अहोई माता  ब्राह्मणी रुद्राणी कमल तू हे है जग दाता ।  सूर्य चन्द्रमा ध्यावत नारद ऋषि गता ॥  जय अहोई माता  माता रूप निरंजन सुख संपत्ति दाता ।  जो कोई तुमको ध्यावत नित मंगल पाता ॥  जय अहोई माता  तू ही है पाताल बसंती तू ही है सुख दाता ।  कर्मा प्रभाव प्रकाशक जगनिधि से त्राता ॥  जय अहोई माता  जिस घर थारो वास  वही में गुणा आता ।   कर न सके सोई कर ले मन नहीं घबराता ॥  जय अहोई माता  तुम बिन सुख न होव पुत्र न कोई पाता ।  खान- पान का वैभव तुम बिन नहीं आता ॥  जय अहोई माता  शुभ गन सुन्दर युक्त शीर निधि जाता ।  रतन चतुर्दश तुम भीं कोई नहीं पाता ॥  जय अहोई माता  श्री अहोई माँ की आरती जो कोई नर गाता ।  उर उमंग आती उपजे पाप उतार जाता ॥  जय अहोई माता  अहोई माता जी की आरती समाप्तम 

Shree Ganga Mata ji ki Aarti

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श्री गंगा जी की आरती  ॐ जय गंगे माता, श्री जय गंगे माता ।  जो नर तुम को ध्याता, मन वांछित फल पाता ॥  ॐ जय गंगे माता चन्द्र सी ज्योति तुम्हारी, जल निर्मल आता ।   शरण पड़े जो तेरी, सो नर तर जाता ॥  ॐ जय गंगे माता  पुत्र सागर के तारे, सब जग के ज्ञाता ।  कृपा दृष्टि तुम्हारी, त्रिभुवन सुखदाता ॥  ॐ जय गंगे माता  एक ही बार जो तेरी शरणागति आता ।  यम की त्रास मिटाकर, परम गति पाता ॥  ॐ जय गंगे माता  आरती मात तुम्हारी जो नर नित गता ।  दास वही सजह में मुक्ति को पाता ॥  ॐ जय गंगे माता  श्री गंगा जी की आरती समाप्तम