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Showing posts from October, 2017

Kartik Mahatmya Chapter-7

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कार्तिक माहात्म्य पाठ -7 इतनी कथा सुनकर सूतजी से शौनक ऋषि कहने लगे कि हे सूतजी ! आप कृपा करके कार्तिक तथा तुलसी का माहात्म्य कहिये| तब सूतजी कहने लगे कि हे ऋषियों जो तुमने मुझसे पूछा है यही प्रश्न एक समय नारदजी से राजा पृथु ने किया था और जो कुछ उत्तर नारद जी ने दिया, वही मैं तुमसे कहता हूँ|  एक समय राजा पृथु नारद जी से कहने लगे कि नारद जी ! भगवान को तुलसी क्यों इतनी अधिक प्रिय हैं| आप इसका माहात्म्य कहिय| तब नारद जी कहने लगे- एक समय राजा बहुत से देवताओं और अप्सराओं सहित महादेव जी के दर्शन को गया | सो जब कैलाश में पहुंचे तब एक बड़े भारी आकार वाले, भयंकर नेत्रों वाले पुरुष को देखकर इंद्र ने पूछा कि तू कौन है और शिव कहाँ हैं? जब कई बार पूछने पर भी उनसे कोई उत्तर नहीं दिया तो इंद्र ने क्रोध में आकर अपना वज्र उसके कण्ड पर मारा, जिससे उसका कंठ नीला हो गया, परन्तु इन्द्र वज्र भी भस्म हो गया | एक बड़े भारी आकार वाले, भयंकर नेत्रों वाले पुरुष को देखकर इंद्र ने पूछा कि तू कौन है और शिव कहाँ हैं? जब कई बार पूछने पर भी उसने कोई उत्तर नहीं दिया तो इंद्र को क्रोध में आकर अपना वज्र उसके कण्ड पर मारा, ज

Kartik Mahatmya Chapter-6| कार्तिक माहात्म्य पाठ -6

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कार्तिक माहात्म्य पाठ -6  नारद जी कहने लगे कि हे ब्रह्मण ! कार्तिक मास के माहात्म्य का विधिपूर्वक वर्णन करिये|  ब्रह्माजी कहने लगे कि हे नारद ! तुम बड़े सज्नन पुरुष हो जो लोकों के हित के लिए ऐसे प्रश्न करते हो| अब मैं ऐसी कथा तुमसे कहता हूँ जिसके सुनने मात्र से पापों का नाश हो जाता हैं| हे नारद! सूतजी इसी नैमिषारण्य तीर्थ में शौनक ऋषियों से कहते हैं कि हे ऋषियों! साधुओं का संत्सग अति पवित्र होता हैं और संसार के पापों के भय को दूर कर देता है| ज्ञानियों को मोक्ष देता है| कामना वालों की कामना पूरी करता है| श्री गंगाजी पापों को नष्ट कर देती हैं, चन्द्रमा ताप को दूर कर देता है, कल्प वृक्ष दीनता को नष्ट कर देता है, परन्तु साधु समागम पाप, ताप और दीनता तीनों को नष्ट कर देता है| इसका आधा क्षण भी मोक्ष का देने वाला हो जाता है| इतना वार्ता सुनकर ऋषि कहने लगे कि हे सूतजी! आप कृपा करके कार्तिक माहात्म्य, इतहास तथा प्रसंघ सहित सुनाइए| तब सूतजी कहने लगे कि हे ऋषियों! एक समय भगवान कृष्ण कमल जैसे नेत्रों वाली श्री सत्यभामा जी कहने लगी कि मैं धन्य हूँ और मेरे माता-पिता भी धन्य हैं जिनके मेरे जैसी कन्या

Kartik mahatmya chapter-5

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कार्तिक माहात्म्य पाठ -5  नारदजी कहने लगे कि ब्राह्मण ! कार्तिक मास का कोई सूंदर व्रत कहिए| तब कहने लगे कि हे पुत्र ! विधिवत जो परम पवित्र और पापनाशक नक्त व्रत है, वह सौभाग्यवती स्त्रियों को अवश्य करना चाहिए| नारदजी ने प्रसन्न किया कि हे ब्रह्मण ! उस व्रत की क्या विधि है और कब करना चाहिए ? ब्रह्माजी ने कहा कि हे पुत्र ! तुम्हारे स्नेह वश यह अति गुप्त कार्तिक मास का व्रत कहता हूँ, तुम सावधान होकर सुनो| अश्विन शुक्ला पूर्णमासी को प्रातः काल उठ कर शौच आदि से निवृत हो कर दन्त मंजन आदि करके नदी संगम में, नदी, सरोवर, दबे कुंड, कूप या घर में स्नान करे| व्रत के एक दिन से पहले सिर न धोवे तथा व्रत वाले दिन विधि पूर्वक स्नान पवित्र मन से विधाता का स्मरण करे तथा व्रत का संकल्प करे और यह कहे कि हे जगत के करता आप मेरे पति की रक्षा की कीजिये, मेरी संतान की वृद्धि करिए| मन्त्र पढ़कर सूर्य को प्रणाम के और सूंदर वस्त्र तथा आभूषणादि को धारण करे| दिन के समय भोजन न करे, न ही जल पीवे अर्थात भजनादि में सारा दिन बिता देवें|  ब्रह्माजी कहने लगे कि हे पुत्र ! सायंकाल को चांदी, तांबा या मिटटी की हमारी मूर्ति बन

kartik mahatmya chapter-4

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कार्तिक माहात्म्य पाठ -4  नारद जी ब्रह्माजी से कहते हैं - ब्रह्मन ! कार्तिक मास में जो दीपदान होता है, उसका माहात्म्य कहिये| ब्रह्माजी कहने लगे कि पुत्र ! दिप चाहे स्वर्ण के हो अथवा चाँदी, तांबा, आटा अथवा मिटटी का हो, अपनी श्रद्धानुसार कार्तिक मास में दान करना चाहिए| ऐसा करने से सब पापों का नाश होता है| दीपक भगवान की मूर्ति के आगे अथवा तुलसी के वृक्ष के समीप, चौक, ब्रह्मण के घर के निचे, वन में, गौशाला में तथा ताक पर चाहे घी का हो या तेल का जलाना चाहिए| कार्तिक मास में स्नान, जागरण, दीपदान तुलसी सेवन, भगवान के मंदिर में मार्जन, झाड़ू आदि लगाना, भगवान की कथा कीर्तन करना सब ही अच्छे फल देने वाले होते है| अतः पूर्व जन्म के पापों को नाश करने के लिए  कृच्छ व्रत इत्यादि करने में उत्तम हैं| इतनी कथा सुनकर नारदजी पूछने लगे कि हे ब्रह्मण कहने लगे कि हे- ब्रह्मण! पूर्व जन्म के पाप कैसे जाने जा सकते हैं ?  ब्रह्मण कहने लगे कि पुत्र! ब्रह्म हत्यारा, क्षयरोगी, गुरु स्त्री गमी, कुंठी और सोने की चोरी करने वाले के नाखून खराब हो जाते है और मदिरा पीने वाले के दन्त ख़राब हो जाते हैं| इस प्रकार पूर्व जन्म क

Kartik Mahatmya Chapter-3

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कार्तिक माहात्म्य पाठ -3  इतनी कथा सुनकर नारद जी पूछने लगे कि हे ब्राह्मण ! आप मुझे उत्तम देवता का पूजन बताइये| तब ब्रह्माजी कहने लगे की हे पुत्र! गंड की नदी के उत्तर की ओर गिरिजा के दक्षिण में चालीस कोस की पृथ्वी महा क्षत्रे कहलाती है| वह पर ही शालिग्राम तथा गौमती चक्र होते हैं| जिनका चरणामृत लेने से मनुष्य मुक्ति को प्राप्त हो जाता है| जिस गौमती में एक चक्र हो उसको सुदर्शन, जिसमे दो चक्र हों वह नारायण, जिसमे तीन चक्र हों उसको अच्युत, चार वाले को जनार्दन, पांच वाले को वासुदेव, छह वाले को प्रधुम्न, सात वाले को संकषरण, आठ वले को नलकूबर, नव वाले को नवव्यूह और दस वाले को दशावतार कहते हैं| इनके दर्शनमात्र से मनुष्य मुक्त हो जाता है|  जो मनुष्य भगवान का पूजन करता है वह अवश्यमेव जीवन्मुक्त हो जाता है और जो भगवान को वीणा, वंशी और गान सुनाता है, वह भगवान की ही प्राप्त हो जाता है| जो भगवान के आगे मृदंग बजाता है वह भगवान  अत्यंत प्रिय होता है| जो भगवान के आगे धूप जलाता है, वह कभी नरकगामी नहीं होता| पूजन जो श्रद्धा से किया गया हो वही पूर्ण होता है| 

Shri Ram Chalisa in hindi

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श्री राम चालीसा ॥चौपाई॥ श्री रघुबीर भक्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी॥ निशि दिन ध्यान धरै जो कोई। ता सम भक्त और नहीं होई॥ ध्यान धरें शिवजी मन मांही। ब्रह्मा, इन्द्र पार नहीं पाहीं॥ दूत तुम्हार वीर हनुमाना। जासु प्रभाव तिहुं पुर जाना॥ जय, जय, जय रघुनाथ कृपाला। सदा करो संतन प्रतिपाला॥ तुव भुजदण्ड प्रचण्ड कृपाला। रावण मारि सुरन प्रतिपाला॥ तुम अनाथ के नाथ गोसाईं। दीनन के हो सदा सहाई॥ ब्रह्मादिक तव पार न पावैं। सदा ईश तुम्हरो यश गावैं॥ चारिउ भेद भरत हैं साखी। तुम भक्तन की लज्जा राखी॥ गुण गावत शारद मन माहीं। सुरपति ताको पार न पाहिं॥ नाम तुम्हार लेत जो कोई। ता सम धन्य और नहीं होई॥ राम नाम है अपरम्पारा। चारिहु वेदन जाहि पुकारा॥ गणपति नाम तुम्हारो लीन्हो। तिनको प्रथम पूज्य तुम कीन्हो॥ शेष रटत नित नाम तुम्हारा। महि को भार शीश पर धारा॥ फूल समान रहत सो भारा। पावत कोऊ न तुम्हरो पारा॥ भरत नाम तुम्हरो उर धारो। तासों कबहूं न रण में हारो॥ नाम शत्रुहन हृदय प्रकाशा। सुमिरत होत शत्रु कर नाशा॥ लखन तुम्हारे आज्ञाकारी। सदा करत सन्तन रखवारी॥ ताते रण जीते नहिं कोई। युद्ध जुरे यमहूं किन होई॥ महालक्ष्मी धर

Shri Bajrang Baan in hindi

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श्री बजरंग बाण ॥दोहा॥ निश्चय प्रेम प्रतीति ते, बिनय करै सनमान। तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करै हनुमान॥ ॥चौपाई॥ जय हनुमन्त सन्त हितकारी। सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी॥ जन के काज विलम्ब न कीजै। आतुर दौरि महा सुख दीजै॥ जैसे कूदि सिन्धु वहि पारा। सुरसा बदन पैठि बिस्तारा॥ आगे जाय लंकिनी रोका। मारेहु लात गई सुर लोका॥ जाय विभीषण को सुख दीन्हा। सीता निरखि परम पद लीन्हा॥ बाग उजारि सिन्धु महं बोरा। अति आतुर यम कातर तोरा॥ अक्षय कुमार मारि संहारा। लूम लपेटि लंक को जारा॥ लाह समान लंक जरि गई। जय जय धुनि सुर पुर महं भई॥ अब विलम्ब केहि कारण स्वामी। कृपा करहुं उर अन्तर्यामी॥ जय जय लक्ष्मण प्राण के दाता। आतुर होइ दु:ख करहुं निपाता॥ जय गिरिधर जय जय सुख सागर। सुर समूह समरथ भटनागर॥ ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमन्त हठीले। बैरिहिं मारू बज्र की कीले॥ गदा बज्र लै बैरिहिं मारो। महाराज प्रभु दास उबारो॥ ॐकार हुंकार महाप्रभु धावो। बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो॥ ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमन्त कपीसा। ॐ हुं हुं हुं हनु अरि उर शीशा॥ सत्य होउ हरि शपथ पायके। रामदूत धरु मारु धाय के॥ जय जय जय हनुमन्त अगाधा। दु:ख पावत जन केहि अपराधा॥ पूजा

Shri Krishan Chalisa in hindi

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श्री कृष्ण चालीसा ॥दोहा॥ बंशी शोभित कर मधुर, नील जलद तन श्याम। अरुण अधर जनु बिम्बा फल, नयन कमल अभिराम॥ पूर्ण इन्द्र, अरविन्द मुख, पिताम्बर शुभ साज। जय मनमोहन मदन छवि, कृष्णचन्द्र महाराज॥ ॥चौपाई॥ जय यदुनन्दन जय जगवन्दन। जय वसुदेव देवकी नन्दन॥ जय यशुदा सुत नन्द दुलारे। जय प्रभु भक्तन के दृग तारे॥ जय नट-नागर नाग नथैया। कृष्ण कन्हैया धेनु चरैया॥ पुनि नख पर प्रभु गिरिवर धारो। आओ दीनन कष्ट निवारो॥ वंशी मधुर अधर धरी तेरी। होवे पूर्ण मनोरथ मेरो॥ आओ हरि पुनि माखन चाखो। आज लाज भारत की राखो॥ गोल कपोल, चिबुक अरुणारे। मृदु मुस्कान मोहिनी डारे॥ रंजित राजिव नयन विशाला। मोर मुकुट वैजयंती माला॥ कुण्डल श्रवण पीतपट आछे। कटि किंकणी काछन काछे॥ नील जलज सुन्दर तनु सोहे। छवि लखि, सुर नर मुनिमन मोहे॥ मस्तक तिलक, अलक घुंघराले। आओ कृष्ण बांसुरी वाले॥ करि पय पान, पुतनहि तारयो। अका बका कागासुर मारयो॥ मधुवन जलत अग्नि जब ज्वाला। भै शीतल, लखितहिं नन्दलाला॥ सुरपति जब ब्रज चढ़यो रिसाई। मसूर धार वारि वर्षाई॥ लगत-लगत ब्रज चहन बहायो। गोवर्धन नखधारि बचायो॥ लखि यसुदा मन भ्रम अधिकाई। मुख महं चौदह भुवन दिखाई॥ दुष्ट कंस अति उ

Shri Sai Chalisa in hindi

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श्री साईं चालीसा ॥चौपाई॥ पहले साई के चरणों में, अपना शीश नमाऊं मैं। कैसे शिरडी साई आए, सारा हाल सुनाऊं मैं॥ कौन है माता, पिता कौन है, ये न किसी ने भी जाना। कहां जन्म साई ने धारा, प्रश्न पहेली रहा बना॥ कोई कहे अयोध्या के, ये रामचंद्र भगवान हैं। कोई कहता साई बाबा, पवन पुत्र हनुमान हैं॥ कोई कहता मंगल मूर्ति, श्री गजानंद हैं साई। कोई कहता गोकुल मोहन, देवकी नन्दन हैं साई॥ शंकर समझे भक्त कई तो, बाबा को भजते रहते। कोई कह अवतार दत्त का, पूजा साई की करते॥ कुछ भी मानो उनको तुम, पर साई हैं सच्चे भगवान। बड़े दयालु दीनबन्धु, कितनों को दिया जीवन दान॥ कई वर्ष पहले की घटना, तुम्हें सुनाऊंगा मैं बात। किसी भाग्यशाली की, शिरडी में आई थी बारात॥ आया साथ उसी के था, बालक एक बहुत सुन्दर। आया, आकर वहीं बस गया, पावन शिरडी किया नगर॥ कई दिनों तक भटकता, भिक्षा माँग उसने दर-दर। और दिखाई ऐसी लीला, जग में जो हो गई अमर॥ जैसे-जैसे अमर उमर बढ़ी, बढ़ती ही वैसे गई शान। घर-घर होने लगा नगर में, साई बाबा का गुणगान ॥ दिग्-दिगन्त में लगा गूंजने, फिर तो साईंजी का नाम। दीन-दुखी की रक्षा करना, यही रहा बाबा का काम॥ बाबा के चरणों म