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Showing posts from August, 2017

Mangalvar Vrat Katha in hindi - Hanuman ji katha

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बजरंग बली की व्रत कथा और व्रत विधि भारत में हनुमान जी को अजेय माना जाता है| हनुमान जी अष्टचिरंजीवियों में से एक हैं| कलयुग में हनुमान जी ही एक मात्र ऐसे देवता हैं जो अपने भक्तो पर शीघ्र कृपा करके उनके कष्टों का निवारण करते हैं| मंगलवार भगवान हनुमान का दिन है| इस दिन व्रत रखने का अपना ही एक अलग महत्व है| मंगलवार व्रत की विधि सर्व सुख, रक्त विकार, राज्य सम्मान तथा पुत्र की प्राप्ति के लिये मंगलवार का व्रत उत्तम है| इस व्रत में गेहूँ और गुड़ का ही भोजन करना चाहिय |भोजन दिन रात में एक बार ही ग्रहण करना ठीक है| व्रत 21 सप्ताह तक करें| मंगलवार के व्रत से मनुष्य के समस्त दोष नष्ट हो जाते है| व्रत के पूजन के समय लाल पुष्पों को चढ़ावें और लाल वस्त्र धारण करें| अन्त में हनुमान जी की पूजा करनी चाहिये तथा मंगलवार की कथा सुननी चाहिये मान्यता है कि स्त्री व कन्याओं के लिए यह व्रत विशेष लाभप्रद होता है| उनके लिए पति के अखंड सुख व संपत्ति की प्राप्ति होती है| मंगलवार व्रत की कथा :  एक ब्राम्हण दम्पत्ति के कोई सन्तान न हुई थी, जिसके कारण पति-पत्नी दुःखी थे| वह ब्राहमण हनुमान जी की पूजा हेतु वन में चला

Somvar Vrat Kath in hindi

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सोमवार व्रत कथा  सोमवार व्रत की विधि: सोमवार का दिन विशेषकर भोलेनाथ शिव जी का होता है | सोमवार का व्रत साधारणतय दिन के तीसरे पहर तक होता है| व्रत मे फलाहार या पारण का कोए खास नियम नहीं है| दिन रात मे केवल एक समे भोजन करें| इस व्रत मे शिवजी पार्वती का पूजन  करना चाहिए| सोमवार के व्रत तीन प्रकार के है- साधारण प्रति सोमवार, सोम्य प्रदोष और सोलह सोमवार – विधि तीनो की एक जैसी होती है| सोमवार व्रत कथा: एक नगर में एक धनी व्यापारी  रहता था। दूर-दूर तक उसका व्यापार फैला हुआ था। नगर में उस व्यापारी का सभी लोग मान-सम्मान  करते थे। इतना सबकुछ होने पर भी वह व्यापारी  बहुत दुखी था क्योंकि उस व्यापारी का कोई पुत्र नहीं था।  दिन-रात उसे एक ही चिंता सताती रहती थी। उसकी मृत्यु  के बाद उसके इतने बड़े व्यापार और धन-संपत्ति को कौन संभालेगा। पुत्र पाने की इच्छा से वह व्यापारी प्रति सोमवार भगवान शिव की व्रत-पूजा किया करता था। सायंकाल  को व्यापारी शिव मंदिर में जाकर भगवान शिव के सामने घी का दीपक जलाया करता था। उस व्यापारी की भक्ति देखकर एक दिन पार्वती ने भगवान शिव से कहा- ‘हे प्राणनाथ, यह व्यापारी आपका सच्चा

Parivartini Ekadashi Vrat Katha

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परिवर्तिनी  एकादशी |  Parivartini Ekadashi Vrat Katha पद्मा एकादशी या 'परिवर्तनी एकादशी' भाद्रपद मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहा जाता है। यह लक्ष्मी का परम आह्लादकारी व्रत है। इस दिन आषाढ़ मास से शेष शैय्या पर निद्रामग्न भगवान विष्णु शयन करते हुए करवट बदलते हैं। इस एकादशी को 'वर्तमान एकादशी' भी कहते हैं। इस एकादशी को भगवान के वामन अवतार का व्रत व पूजन किया जाता है। इस व्रत को करने से सभी प्रकार के अभीष्ट सिद्ध होते हैं। भगवान विष्णु के बौने रूप वामन अवतार की यह पूजा वाजपेय यज्ञ के समान फल देने वाली समस्त पापों को नष्ट करने वाली है। इस दिन लक्ष्मी का पूजन करना श्रेष्ठ है, क्योंकि देवताओं ने अपना राज्य को पुनः पाने के लिए महालक्ष्मी का ही पूजन किया था। इस दिन व्रती को चाहिए कि प्रातः स्नान आदि से निवृत होकर भगवान वामनजी की प्रतिमा स्थापित करके मत्स्य, कूर्म, वाराह, आदि नामों का उच्चारण करते हुए गंध, पुष्प आदि से विधिपूर्वक पूजन करें। फिर दिनभर उपवास रखें और रात्रि में जागरण करें। दूसरे दिन पुनः पूजन करें तथा ब्राह्मण को भोजन कराएँ व दान दें। तत्पश्चात् स्वयं भोजन करके

Shatila Ekadashi Vrat Katha

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Shatila Ekadashi Vrat Katha|  षट्तिला एकादशी व्रत  Shatila Ekadashi Vrat Katha| महात्मय  देवी एकादशी भगवान जनार्दन की शक्ति हैं| इस देवी को वरदान प्राप्त हैं कि जो भी इनका व्रत रखेगा उसे भगवान विष्णु की कृपा प्राप्त होगी और वह मोक्ष का भागी होगा| एकादशी का व्रत भगवान को अत्यंत प्रिय है| इससे पापी से पापी व्यक्ति का उद्धार हो जाता है| इस एकादशी में दान विशेषकर तिल दान का बहुत ही उत्तम फल बताया गया है| जो व्यक्ति इस एकादशी के दिन 6 प्रकार से तिल का दान करते हैं उन्हें अनंत फल की प्राप्ति होती है| Shatila Ekadashi Vrat Katha- षट्तिला एकादशी व्रत की कथा  नारद मुनि त्रिलोक भ्रमण करते हुए भगवान विष्णु के धाम वैकुण्ठ पहुंचे| वहां पहुंच कर उन्होंने वैकुण्ठ पति को प्रणाम करके उनसे अपनी जिज्ञास व्यक्त करते हुए प्रश्न किया कि प्रभु षट्तिला एकादशी  की क्या कथा है और इस एकादशी को करने से कैसा पुण्य मिलता है| देवर्षि द्वारा विनित भाव से इस प्रकार प्रश्न किये जाने पर लक्ष्मीपति भगवान विष्णु ने कहा प्राचीन काल में पृथ्वी पर एक ब्राह्मणी रहती थी | ब्राह्मणी मुझमें बहुत ही श्रद्धा एवं भक्ति रखती थी| यह

Saphala Ekadashi Vrat Katha

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Saphala Ekadashi Vrat Katha-  सफला एकादशी  Saphala Ekadashi Vrat Katha-  महात्मय  सफला एकादशी का व्रत अपने नामानुसार मनोनुकूल फल प्रदान करने वाला है| भगवान श्री कृष्ण इस व्रत की बड़ी महिमा बताते हैं| इस एकादशी के व्रत से व्यक्तित को जीवन में उत्तम फल की प्राप्ति होती है और वह जीवन का सुख भोगकर मृत्यु पश्चात विष्णु लोक को प्राप्त होता है| यह व्रत अति मंगलकारी और पुण्यदायी है| Saphala Ekadashi Vrat Katha-  सफला एकादशी व्रत कथा  सूत जी ने कहा है कि युधिष्ठिर ने कृष्ण से पूछा कि माघ मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी  का क्या महात्मय एवं विधान है आप अनुग्रह करके हमें बताएं| युधिष्ठर के प्रश्न् को सुनकर श्री कष्ण ने कहा एक थे राजा महिष्मति उनके पांच पुत्रों में सबसे बड़ा पुत्र बहुत ही अधर्मी था | वह सदा नीच कर्म करता था | शास्त्रों में जो भी पाप कर्म बताये गये हैं वह उन सभी मे लिप्त रहता था | धर्मात्मा राजा अपने पुत्र के स्वभाव एवं व्यवहार से अत्यंत दुखी था | पुत्र के इस नीच कर्म को देखकर राजा ने उसका नाम लुम्भक रख दिया और उसे उत्तराधिकार से वंचित कर देश त्यागने का आदेश दिया|  पिता द्वारा अधिकार

Mokshada Ekadashi Vrat Katha

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Mokshada Ekadashi Vrat Katha-  मोक्षदा एकादशी  महात्मय  गीता के अनुसार अन्य सभी लोक में मर कर गया हुआ प्राणी पुन: गर्भ में आता है लेकिन जो विष्णु लोक में जाता है वह जीवन चक्र के फेर से मुक्त होकर मोक्ष प्राप्त करता है। यूं तो पृथ्वी पर जितने भी प्रकार के जीव हैं वह सभी परमात्मा के ही अंश हैं परंतु मोहवश कर्म बन्धन में फंस कर जन्म और मृत्यु के दो पाटों में पिसते रहते हैं। शरीर जब छूटता है तब आत्मा को अपने लक्ष्य का बोध होता और वह अफसोस करता है लेकिन जब पुन: प्रभु शरीर प्रदान करते है तो प्राप्त शरीर के कर्म में रम जाता है और अपने परम लक्ष्य से दूर होता चला जाता है। भगवान गीता में कहते हें मन ही कर्म बंधन में बांधने वाला है, इस पर जो काबू पा लेता है कर्म बंधन से मुक्त हो जाता है और सदा सदा के लिए जीवन मृत्यु के च्रक से मुक्त हो जाता है। प्राचीन मनिषियों, ऋषि-मुनियों एवं संतों ने अपने मन पर काबू रखकर प्रभु नाम की ल मन में जलाकर रखी और कई कई वर्षों तक कठोर तप करके जीवन मृत्यु के चक्र से मुक्त हो गये। गृहस्थ जीवन में रहकर हम मनुष्य किस प्रकार मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं इसके लिए कृपालु भगवान

Utpanna Ekadashi Vrat Katha

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उत्पन्ना एकादशी व्रत  एकादशी व्रत कथा व महत्व के बारे में तो सभी जानते हैं। हर मास की कृष्ण व शुक्ल पक्ष को मिलाकर दो एकादशियां आती हैं। यह भी सभी जानते हैं कि इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है। लेकिन यह बहुत कम जानते हैं कि एकादशी एक देवी थी जिनका जन्म भगवान विष्णु से हुआ था। एकादशी मार्गशीर्ष मास की कृष्ण एकादशी को प्रकट हुई थी जिसके कारण इस एकादशी का नाम उत्पन्ना एकादशी पड़ा। इसी दिन से एकादशी व्रत शुरु हुआ था। हिंदू धर्म में एकादशी व्रत का बहुत अधिक महत्व माना जाता है इसलिये यह जानकारी होना जरूरी है कि एकादशी का जन्म कैसे और क्यों हुआ। उत्पन्ना एकादशी व्रत कथा वैसे तो प्रत्येक वर्ष के बारह महीनों में 24 एकादशियां आती हैं लेकिन मलमास या कहें अधिकमास को मिलाकर इनकी संख्या 26 भी हो जाती है। सबसे पहली एकादशी मार्गशीर्ष कृष्ण एकादशी को माना जाता हैं। चूंकि इस दिन एकादशी प्रकट हुई थी इसलिये यह दिन उत्पन्ना एकादशी के नाम से जाना जाता है। एकादशी के जन्म लेने की कथा कुछ इस प्रकार है। बात सतयुग की है कि चंद्रावती नगरी में ब्रह्मवंशज नाड़ी जंग राज्य किया करते थे। मुर नामक उनका एक पुत्र

Dev Prabodhini Ekadashi Vrat Katha

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देव प्रबोधिनी एकादशी कार्तिक मास  देव प्रबोधिनी एकादशी कार्तिक, शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहते हैं। दीपावली के बाद आने वाली एकादशी को ही देव प्रबोधिनी एकादशी अथवा देवउठान एकादशी या 'प्रबोधिनी एकादशी' कहा जाता है। आषाढ़, शुक्ल पक्ष की एकादशी की तिथि को देव शयन करते हैं और इस कार्तिक, शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन उठते हैं। इसीलिए इसे देवोत्थान (देव-उठनी) एकादशी कहा जाता है। कहा जाता है कि इस दिन भगवान विष्णु, जो क्षीरसागर में सोए हुए थे, चार माह उपरान्त जागे थे। विष्णु जी के शयन काल के चार मासों में विवाहादि मांगलिक कार्यों का आयोजन करना निषेध है। हरि के जागने के बाद ही इस एकादशी से सभी शुभ तथा मांगलिक कार्य शुरू किए जाते हैं। प्राचीन मान्यता है :-  कहा जाता है कि चातुर्मास के दिनों में एक ही जगह रुकना ज़रूरी है, जैसा कि साधु संन्यासी इन दिनों किसी एक नगर या बस्ती में ठहरकर धर्म प्रचार का काम करते हैं। देवोत्थान एकादशी को यह चातुर्मास पूरा होता है और पौराणिक आख्यान के अनुसार इस दिन देवता भी जाग उठते हैं। माना जाता है कि देवशयनी एकादशी के दिन सभी देवता और उनके अधिपति विष्णु सो जाते ह

Papankusha Ekadashi Vrat Katha

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पापांकुशा एकादशी आश्विन मास पापांकुशा एकादशी आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को कहते हैं। इस एकादशी का महत्त्व स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने धर्मराज युधिष्ठिर को बताया था। इस एकादशी पर भगवान 'पद्मनाभ' की पूजा की जाती है। पापरूपी हाथी को इस व्रत के पुण्यरूपी अंकुश से वेधने के कारण ही इसका नाम 'पापांकुशा एकादशी' हुआ है। इस दिन मौन रहकर भगवद स्मरण तथा भोजन का विधान है। इस प्रकार भगवान की अराधना करने से मन शुद्ध होता है तथा व्यक्ति में सद्-गुणों का समावेश होता है।  पापांकुशा एकादशी व्रत विधि इस एकादशी व्रत का नियम पालन दशमी तिथि की रात्रि से ही शुरू करना चाहिए तथा ब्रह्मचर्य का पालन करें। एकादशी के दिन सुबह नित्य कर्मों से निवृत्त होकर साफ वस्त्र पहनकर भगवान विष्णु की शेषशय्या पर विराजित प्रतिमा के सामने बैठकर व्रत का संकल्प लें। इस दिन यथा संभव उपवास करें। उपवास में अन्न ग्रहण नहीं करना चाहिए। संभव न हो तो व्रती एक समय फलाहार कर सकता है। इसके बाद भगवान 'पद्मनाभ' की पूजा विधि-विधान से करनी चाहिए। यदि व्रत करने वाला पूजन करने में असमर्थ हों तो पूजन किसी योग्य ब्राह्मण

Papmochni Ekadashi Vrat Katha

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पापमोचनी एकादशी चैत्र कृष्ण पक्ष पापमोचनी एकादशी चैत्र कृष्ण पक्ष की एकादशी को कहा जाता है। पापमोचनी एकादशी का अर्थ है 'पाप को नष्ट करने वाली एकादशी'। व्रत और विधि एकादशी के दिन सूर्योदय काल में स्नान करके व्रत का संकल्प करें। इस दिन भगवान विष्णु को अर्ध्य दान देकर षोडशोतपचार पूजा करनी चाहिए। तत्पश्चात् धूप, दीप, चंदन आदि से नीराजन करना चाहिए। इस दिन निंदित कर्म तथा मिथ्या भाषण नहीं करना चाहिए। एकादशी के दिन भिक्षुक, बन्धु-बान्धव तथा ब्राह्मणों को भोजन दान देना फलदायी होता है। इस व्रत के करने से समस्त पापों का नाश होता है और सुख-समृद्धि प्राप्त होती है। एकादशी तिथि को जागरण करने से कई गुणा पुण्य मिलता है अत: रात्रि में भी निराहार रहकर भजन कीर्तन करते हुए जागरण करें। जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है इस व्रत को करने से ब्रह्महत्या, स्वर्णचोरी, मद्यपान, अहिंसा, अगम्यागमन, भ्रूणघात आदि अनेकानेक घोर पापों के दोषों से मुक्ति मिल जाती है। एकादशी व्रत कथा प्राचीन काल में चैत्ररथ नामक अति रमणीक वन था।इस वन में च्यवन ऋषि के पुत्र मेधावी नामक नामक ऋषि तपस्या करते थे। इसी वन में देवराज इंद्र

Ganesh Chaturthi 2019| Ganpati Bappa Morya |Vrat Katha aur vidhi in Hindi

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गणेश चतुर्थी व्रत कथा श्री गणेश चतुर्थी व्रत को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलन में है| कथा के अनुसार एक बार भगवान शंकर और माता पार्वती नर्मदा नदी के निकट बैठे थें| वहां देवी पार्वती ने भगवान भोलेनाथ से समय व्यतीत करने के लिये चौपड खेलने को कहा| भगवान शंकर चौपड खेलने के लिये तो तैयार हो गये| परन्तु इस खेल मे हार-जीत का फैसला कौन करेगा?  इसका प्रश्न उठा, इसके जवाब में भगवान भोलेनाथ ने कुछ तिनके एकत्रित कर उसका पुतला बना, उस पुतले की प्राण प्रतिष्ठा कर दी और पुतले से कहा कि बेटा हम चौपड खेलना चाहते है| परन्तु हमारी हार-जीत का फैसला करने वाला कोई नहीं है| इसलिये तुम बताना की हम मे से कौन हारा और कौन जीता|  यह कहने के बाद चौपड का खेल शुरु हो गया| खेल तीन बार खेला गया, और संयोग से तीनों बार पार्वती जी जीत गई| खेल के समाप्त होने पर बालक से हार-जीत का फैसला करने के लिये कहा गया, तो बालक ने महादेव को विजयी बताया| यह सुनकर माता पार्वती क्रोधित हो गई और उन्होंने क्रोध में आकर बालक को लंगडा होने व किचड में पडे रहने का श्राप दे दिया| बालक ने माता से माफी मांगी और कहा की मुझसे अज्ञानता वश ऎसा हुआ, मैनें

Parma Ekadashi Vrat Katha

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परमा एकाद्शी अधिमास कृष्णा  परमा एकाद्शी व्रत विधि  इस मास को मलमास और अधिमास के नाम से भी जाना जाता है| इस व्रत को करने से व्यक्ति को समस्त पापों से मुक्ति मिलती है| इस व्रत को पूरे विधि-विधान से करना चाहिए और व्रत के दिन भगवान श्री विष्णु जी की धूप, दीप, नैवेद्ध, पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिए|  एकाद्शी तिथि से पूर्व की रात्रि दशमी तिथि की होती है| इस रात्रि में परमा एकादशी व्रत शुरु किया जाता है| यह व्रत क्योकिं 24 घंटे की अवधि का होता है इसलिये कुछ कठिन होता है| परन्तु मानसिक रुप से स्वयं को इस व्रत के लिये तैयार करने पर व्रत को सहजता के साथ किया जा सकता है| फिर श्रद्वा और विश्वास बनाये रखने से कठिन व्रत भी सरल हो जाता है| इस व्रत को द्शमी तिथि की रात्रि से ही शुरु कर दिया जाता है|  दशमी तिथि की अवधि भी इस व्रत की समयावधि में आती है| इसलिये दशमी तिथि में सात्विक भोजन करना चाहिए| सात्विक भोजन में मांस, मसूर, चना, शहद, शाक और मांगा हुआ भोजन नहीं करना चाहिए| भोजन में नमक भी न हों, तो और भी अच्छा रहता है| भोजने करने के लिये कांसे के बर्तन का प्रयोग करना चाहिए| साथ ही इस दिन भूमि पर शयन क

Rama Ekadashi Vrat Katha in hindi | Ekadashi krishan paksh Katha

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रमा एकादशी कृ्ष्ण पक्ष रमा एकादशी व्रत कार्तिक मास के कृ्ष्ण पक्ष की एकादशी को किया जाता है|  इस दिन भगवान श्री केशव का संपूर्ण वस्तुओं से पूजन किया जाता है| इस एकादशी के दिन नैवेद्ध तथा आरती कर प्रसादवितरित करके ब्राह्माणों को खिलाया जाता है और दक्षिणा भी बांटी जाती है| रमा एकादशी व्रत फल  कार्तिक मास के कृ्ष्णपक्ष की एकादशी का नाम रमा एकादशी है| इस एकादशी को रम्भा एकादशी के नाम से भी जाना जाता है| इसका व्रत करने से समस्त पाप नष्ट होते है| रमा एकादशी व्रत कथा  प्राचीन काल की बात है, एक बार मुचुकुन्द नाम का एक राजा राज्य करता था| उसके मित्रों में इन्द्र, वरूण, कुबेर और विभीषण आदि थे| वह प्रकृ्ति से सत्यवादी था  तथा वह श्री विष्णु का परम भक्त था| उसका राज्य में कोई पाप नहीं होता है| उसके यहां एक कन्या ने जन्म लिया बडे होने पर उसने उस कन्या का विवाह राजा चन्द्रसेन के पुत्र साभन के साथ किया|  एक समय जब चन्द्रभागा अपने ससुराल में थी, तो एक एकादशी पडी| एकादशी का व्रत करने की परम्परा उसने मायके से मिली थी| चन्द्रभागा का पति सोचने लगा कि मैं शारीरिक रुप से अत्यन्त कमजोर हूँ| मैं इस एकादशी के

Shri Krishna Janmashtami Vrat Kath

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श्री जन्माष्टमी व्रत कथा  पूर्ण विधि उपवास की पूर्व रात्रि को हल्का भोजन करें और ब्रह्मचर्य का पालन करें। उपवास के दिन प्रातःकाल स्नानादि नित्यकर्मों से निवृत्त हो जाएँ। पश्चात् सूर्य, सोम, यम, काल, संधि, भूत, पवन, दिक्‌पति, भूमि, आकाश, खेचर, अमर और ब्रह्मादि को नमस्कार कर पूर्व या उत्तर मुख बैठें। इसके बाद जल, फल, कुश और गंध लेकर संकल्प करें- ममखिलपापप्रशमनपूर्वक सर्वाभीष्ट सिद्धये श्रीकृष्ण जन्माष्टमी व्रतमहं करिष्ये॥  अब मध्याह्न के समय काले तिलों के जल से स्नान कर देवकी जी के लिए 'सूतिकागृह' नियत करें। तत्पश्चात् भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति या चित्र स्थापित करें। मूर्ति में बालक श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती हुई देवकी हों और लक्ष्मीजी उनके चरण स्पर्श किए हों अथवा ऐसे भाव हो। इसके बाद विधि-विधान से पूजन करें। पूजन में देवकी, वसुदेव, बलदेव, नंद, यशोदा और लक्ष्मी इन सबका नाम क्रमशः निर्दिष्ट करना चाहिए। फिर निम्न मंत्र से पुष्पांजलि अर्पण करें- 'प्रणमे देव जननी त्वया जातस्तु वामनः। वसुदेवात तथा कृष्णो नमस्तुभ्यं नमो नमः। सुपुत्रार्घ्यं प्रदत्तं में गृहाणेमं नमोऽस्तु ते।'  अ