Parma Ekadashi Vrat Katha
परमा एकाद्शी अधिमास कृष्णा
परमा एकाद्शी व्रत विधि
इस मास को मलमास और अधिमास के नाम से भी जाना जाता है| इस व्रत को करने से व्यक्ति को समस्त पापों से मुक्ति मिलती है| इस व्रत को पूरे विधि-विधान से करना चाहिए और व्रत के दिन भगवान श्री विष्णु जी की धूप, दीप, नैवेद्ध, पुष्प आदि से पूजा करनी चाहिए| एकाद्शी तिथि से पूर्व की रात्रि दशमी तिथि की होती है| इस रात्रि में परमा एकादशी व्रत शुरु किया जाता है| यह व्रत क्योकिं 24 घंटे की अवधि का होता है इसलिये कुछ कठिन होता है| परन्तु मानसिक रुप से स्वयं को इस व्रत के लिये तैयार करने पर व्रत को सहजता के साथ किया जा सकता है| फिर श्रद्वा और विश्वास बनाये रखने से कठिन व्रत भी सरल हो जाता है| इस व्रत को द्शमी तिथि की रात्रि से ही शुरु कर दिया जाता है| दशमी तिथि की अवधि भी इस व्रत की समयावधि में आती है| इसलिये दशमी तिथि में सात्विक भोजन करना चाहिए| सात्विक भोजन में मांस, मसूर, चना, शहद, शाक और मांगा हुआ भोजन नहीं करना चाहिए| भोजन में नमक भी न हों, तो और भी अच्छा रहता है| भोजने करने के लिये कांसे के बर्तन का प्रयोग करना चाहिए| साथ ही इस दिन भूमि पर शयन करना शुभ रहता है| इसके अतिरिक्त दशमी तिथि से ही ब्रह्माचार्य का पालन करना भी आवश्यक होता है| एकादशी व्रत करने वाले व्यक्ति को एकाद्शी के दिन प्रात: उठना चाहिए| प्रात:काल की सभी क्रियाओं से मुक्त होने के बाद उसे स्नान कार्य में मिट्टी, तिल, कुश और आंवले के लेप का प्रयोग करना चाहिए| स्नान करते हुए सबसे पहले शरीर में मिट्टी का लेप लगाया जाता है और उसके बाद तिल का लेप, आंवले का लेप और कुश से रगड कर स्नान करना चाहिए| इन वस्तुओं का प्रयोग करने से व्यक्ति पूजा करने योग्य शुद्ध होता है| इस स्नान को किसी पवित्र नदी, तीर्थ या सरोवर अथवा तालाब पर करना चाहिए| अगर यह संभव न हो, तो घर पर ही स्नान किया जा सकता है| स्नान करने के बाद साफ वस्त्र धारण करने चाहिए और भगवान विष्णु जी और शंकर देव की पूजा करनी चाहिए| पूजा करने के लिये इन देवों की प्रतिमा का प्रयोग करना चाहिए और प्रतिमा न मिलें, तो तस्वीर का प्रयोग किया जा सकता है| सबसे पहले प्रतिमा या तस्वीर का पूजन करना चाहिए| इसके बाद एक स्थान पर धान्य रख उसके ऊपर मिट्टी या तांबें का घडा रखा जाता है| घडे पर लाल वस्त्र बांध कर धूप से इसका पूजन करना चाहिए| इसके बाद घडे पर तांबे या चांदी का बर्तन रखा जाता है और भगवान की पूजा धूप, दीप, पुष्प की जाती है|
परमा एकाद्शी व्रत कथा
प्राचीन काल में वभ्रु वाहन नामक एक दानी तथा प्रतापी राजा था| वह प्रतिदिन ब्राह्माणों को सौ गौए दान करता था| उसी के राज्य में प्रभावती नाम की एक बाल-विधवा रहती थी| जो भगवन श्री विष्णु की परम उपासिका थी| पुरुषोतम मास में नित्य स्नान कर विष्णु तथा शंकर की पूजा करती थी| परमा एकाद्शी अर्थात हरिवल्लभा एकादशी व्रत को कई वर्षों से निरंतर करती चली आ रही थी| दैवयोग से राजा वभ्रुवाहन और बाल-विधवा की एक ही दिन मृ्त्यु हुई, और दोनों साथ ही धर्मराज के दरबार में पहुंचे| धर्मराज ने उठ्कर जितना स्वागत बाल-विधवा का किया, उतना सम्मान राजा का नहीं किया| राजा को अपने दान-पुन्य पर अत्यधिक भरोसा था| वह आश्चर्य चकित हुआ इसी समय चित्रगुप्त ने इसका कारण पूछा तो धर्मराज ने बाल-विधवा के द्वारा किये जाने वाले परमा एकादशी के व्रत के विषय में बताया|
Comments
Post a Comment