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Bhagwat Geeta Chapter-2

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भगवत गीता दूसरा अध्याय  संजय ने कहा हे धृतराष्ट तब श्री कृष्ण दया से युक्त नेत्रों में आँसू भरे व्याकुल चित अर्जुन से बोले- हे अर्जुन! अनार्य के सेवन करने योग्य अपयश कारक नरक में गिरने वाला मोह इस समय तुम्हारे मन में कहाँ से आया| तुम कायर मत बनो| यह शोभा नहीं देता तुम ह्रदय की दुर्बलता को त्यागकर युद्ध के निमित खड़े हो जाओ| अर्जुन ने कहा हे मधुसूदन ! मैं रण में पूज्य भीष्म और द्रोणाचर्य के ऊपर बाण प्रहार कर कैसे युद्ध करूँ| इसलोक मैं महात्मा गुरुजनों को न मारकर भीख मांगकर भोजन करना उत्तम है और अर्थ की कामना के लिए तो गुरुजनों को मारकर उनके रक्त से सने भोगो को भोगूँगा| हम नहीं जानते कि संग्राम में हम दोनों में कौन जीतेगा| यदि हम जित भी ले तो भी जिनको मार करके हम जीवित रहना नहीं चाहते वही धृतराष्ट का पुत्र हमारे सामने प्रस्तुत हैं| दीनता से मेरी स्वाभाविक वृति नष्ट हो गई है और धर्म के विषय में मेरा चित मोहित हो गए है| मैं आपसे पूछता हूँ जिससे निश्चय करके मेरा भला हो वह मुझे समझकर कहिय क्योँकि मैं आपका शिष्य हूँ और आपकी शरण हूँ मुझे ज्ञान शिक्षा दीजिए| मुझे पृथवी का निष्कंटक राज्य मिल ...

Bhagwat Geeta Chapter -1

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श्री गीता के ज्ञान की कथा प्रथम अध्याय प्रारम्भ  जब कौरव और पांडव महाभारत के युद्ध को चले तब राजा धृतराष्ट ने कहा मैं भी युद्ध को देखने चलूँ तब श्री व्यास देवजी ने कहा हे राजन- नेत्र के बिना क्या देखोगे तब राजा धृतराष्ट ने कहा हे प्रभुजी देखूँगा नहीं तो श्रवण तो करूंगा | तब व्यासजी ने कहा हे राजन ! तेरा सारथी सञ्जय जो कुछ महाभारत के युद्ध की लीला कुरुक्षेत्र में होगी सो तुझे यहाँ बैठे ही श्रवण करावेगा | व्यास देवजी के मुख से यह वचन सुन सञ्जय ने विनती करी हे प्रभु ! यहाँ हस्तिनापुर में बैठे मैं कुरुक्षेत्र की लीला कैसे जानूंगा तथा राजा को किस भाँति कहूँगा? तब व्यास जी ने प्रसन्न होकर सञ्जय को यह वचन कहा कि हे सञ्जय मेरी कृपा से तुझे यहाँ ही सब दिखाई देगा| व्यास जी के इतना कहते ही उसी समय संजय की दिव्य दृष्टि भई और बुद्धि उसकी दिव्य भई अब आगे महाभारत का कौतुक कहते हैं सुनो सात अक्षौहिणी सेना पांडव की ओर ग्यारह  अक्षौहिणी सेना कौरवों की यह दोनों सेना कुरुक्षेत्र में जा एकत्र भई|  धृतराष्ट ने पूछा- हे संजय धर्म के क्षेत्र कुरुक्षेत्र में युद्ध की इच्छा से एकत्र हुए मेरे ...