Bhagwat Geeta Chapter -8
भागवत गीता आठवां अध्याय अर्जुन ने कहा, हे पुरुषोतम ! वह ब्रह्म क्या है ? अध्यात्म किसको कहते है? कर्म क्या है? अधिभूत क्या और अधिदैव क्या कहाता है? हे मधुसूदन ! अधियज्ञ केसा है और इस देह में अधिदेह कौन सा है? मरने के समय में स्थिर चित वाले लोग तुमको कैसे जान जाते है| श्री कृष्ण भगवान बोले जो अक्षर (अविनाशी) और परम (सबसे बड़ा श्रेष्ठ) है वही ब्रह्म है प्रत्येक वस्तु का स्वभाव अध्यात्म कहता है और समस्त चराचर की उत्पति करने वाला जो विसर्ग है वह कर्म है| जो देह आदि नाशवान वस्तु है वह अभिभूत कहाता है विश्व रूप जो विराट पुरुष है वह अधिदेव है और हे पुरुष है वह अधिदैव है और हे पुरुषों में श्रेष्ठ ! इस देह में मैं ही अधियज्ञ हूँ| जो अंतकाल में मेरा ध्यान करता हुआ और शरीर त्याग करता है वह निःसंदेह मेरे स्वरूप को पाता है| हे कुंती पुत्र ! अंत समय मनुष्य जिस वस्तु का स्मरण करता हुआ शरीर त्यगता है वह उसी को पाता है| इस कारण सदैव मुझ ही में मन और बुद्धि को लगाकर मेरा ही स्मरण करते हुए संग्राम करो, तुम निःसंदेह मुझको आ मिलेंगे| हे पार्थ ! अभ्यास रूप योग से युक्त हो दूसरी और न जाने वाले मन से सदा ...