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Showing posts from September, 2019

Durga-Saptashti-Chapter-13 Terhva Adhyay

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Durga-Saptashti-Chapter-13 दुर्गा सप्तशती तेरहवाँ अध्याय  (राजा सुरथ और वैश्य  को देवी का वरदान)  महर्षि मेघा ने कहा - हे राजन ! इस प्रकार देवी के उत्तम माहात्म्य का वर्णन मैंने तुमको सुनाया। जगत को धारण करने वाली इस देवी का ऐसा ही प्रभाव है, वही देवी ज्ञान के देने वाली है और भगवान विष्णु की इस माया के प्रभाव से तुम और यह वैश्य तथा अन्य विवेकीजन मोहित होते हैं और भविष्य में मोहित होंगे। हे राजन ! तुम इसी परमेश्वरी की शरण में जाओ। यही भगवती आराधना करने पर मनुष्य को भोग, स्वर्ग तथा मोक्ष प्रदान करती है। मार्कण्ड जी ने कहा- महर्षि मेघा की यह बात सुनकर राजा सुरथ ने उन उग्र व्रत वाले ऋषि की प्रणाम किया और राज्य के छिन्न जाने के कारण उसके मन में अत्यंत ग्लानि हुई, और वह राजा तथा वैश्य तपस्या के लिए वन को चले गए और नदी के तट पर आसान लगाकर भगवती के दर्शन के लिए तपस्या करने लगे। दोनों ने नदी के तट पर देवी की मूर्ति बनाई और पुष्प, धूप, गन्ध, डीप तथा हवन द्वारा उसका पूजन करने लगे। पहले उन्होंने आहार को काम कर दिया। फिर बिलकुल निराहार रहकर भगवती में मन लगाकर एकाग्रता पूर्वक उसक...

Durga-Saptashti-Chapter-12 Barhvan Adhyay

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Durga-Saptashti-Chapter-12 दुर्गा सप्तशती बारहवां अध्याय (देवी के चरित्रों के पथ का माहात्म्य) देवी बोली - हे देवताओं ! जो पुरुष इन स्त्रोत्रों द्वारा एकाग्रचित होकर मेरी स्तुति करेगा, उसके सम्पूर्ण कष्टों को निःसन्देह हर लूंगी। मधु केटभ के नाश, महिसासुर के वध और शुम्भ तथा निशुम्भ के वध की जो मनुष्य कथा कहेंगे, मेरे महात्म्य को अष्टमी चतुर्दर्शी व नवमी के दिन एकाग्रचित से भक्तिपूर्वक सुनेंगे, उनको कभी कोई पाप न रहेगा, पाप से उत्पन्न हुई विपति भी उनकी न सताएगी, उनके घर में दरिद्रता न होगी और ने उनको प्रियजनों का विछोह ही होगा, उनको किसी प्रकार का भय न होगा। इसी लिए प्रत्येक मनुष्य को भक्ति पूर्वक मेरे इस कल्याणकारक महात्म्य को सदा पढ़ना  चाहिए, मेरा यह माहात्म्य महामारी से उत्पन्न हुए सम्पूर्ण उपद्रोवों को एवं तीन प्रकार के उत्पातों को शांत कर देता है, जिस घर व मंदिर में या जिस स्थान पर मेरा यह स्त्रोत विधि पूर्वक पाठ करता है, उस स्थान का मैं कभी भी त्याग नहीं करती और वहाँ सदा ही मेरा निवास रखता है। बलिदान, पूजा, होम तथा महोत्सवों में मेरा यह चरित्र उच्चारण करना तथा सुनना चाहिए। ऐसा ...

kya hai navratri ka mahtav

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क्या है नवरात्रि (मां दुर्गा) का महत्व  नवरात्रि हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है। साल में दो बार ये पूरे भारत में मनाया जाता है। प्रमुख तौर पर दो नवरात्र मनाए जाते हैं लेकिन हिंदी पंचांग के अनुसार एक वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं। चैत्र, आषाढ़, अश्विन और माघ हिंदू कैलेंडर के अनुसार इन महीनों के शुक्ल पक्ष में आते हैं। हिंदू नववर्ष चैत्र माह के शुक्ल पक्ष के पहले दिन यानि पहले नवरात्रे को मनाया जाता है। आपको बता दें कि आषाढ़ और माघ माह के नवरात्रों को गुप्त नवरात्रे कहा जाता है। चैत्र और अश्विन माह के नवरात्रे बहुत लोकप्रिय हैं। अश्विन माह के शुक्ल पक्ष में आने वाले नवरात्रों को दुर्गा पूजा नाम से और शारदीय नवरात्रों के नाम से भी जाना जाता है। अश्विन माह के नवरात्रों को महानवरात्र माना जाता है ये दशहरे से ठीक पहले होते हैं। दुर्गा मां की अलग-अलग शक्तियों की इन नौ दिन पूजा की जाती है। हर रूप की अपनी-अपनी विशेषता होती है, इसलिए इन नौ दिनों में मां के हर रूप की पूजा होती है। शैलपुत्री- ये ही नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं। पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इन...

Durga Saptashti -Chapter 1- Phala Adhyay

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Durga Saptashti -Chapter 1- Phala Adhyay ॐ नम चण्डिकायै नमः  Durga Saptashti -Chapter 1अथ श्री दुर्गा सप्तशती भाषा   पहला अध्याय  (महर्षि ऋषि का राजा सुरथ और समाधि को देवी की महिमा बताना ) महर्षि मार्कण्डये जी बोले- सूर्य के पुत्र सावर्णि की उत्पति की कथा विस्तार पूरक कहता हो, सावर्णि महामाया की कृपा से जिस प्रकार मन्वन्तर के स्वामी हुए, उसका हाल भी सुनो। पहले स्वरोचिष नामक मन्वन्तर में चैत्र वंशी सुरथ नाम के एक राजा थे। साडी पृथवी पर उनका राज्य था। वह प्रजा को अपने पुत्र की सामान मानते थे तो भी कोलाविधवंशी राजा उनके शत्रु बन गये। दुष्टों को दण्ड देने वाले राजा सुरथ की उनके साथ लड़ाई हुई, कोलाविधवंशीयों के संख्या में कम होने के पर भी राजा सुरथ युद्ध में उनसे हार गये। तब वह अपने नगर में आ गए, केवल अपने देश का राज्य ही उनके पास रह गया और वह उसी देश के राजा होकर राज्य करने लगे, किन्तु उनके शत्रुओं ने उन पर वहां भी आक्रमण किय। राजा को बलहीन देखकर उसके दुष्ट मंत्रियो ने राजा की सेना और खजाना अपने अधिकार में कर लिया। राजा सुरथ अपने राज्य अधिकार को हार कर शिकार खेलने के बहाने घोड़...

Durga maa ke 108 chamtkari naam in hindi

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Durga maa ke 108 chamtkari naam  दुर्गा माँ  के 108 चमत्कारी नाम  हिन्दू धर्म में सभी देवी देवताओ की तरह माँ दुर्गा के 108 नामो का उच्चारण करना अति फलदायक माना जाता है| भारत में बहुत सारे भक्त माँ दुर्गा के इन नामो को अपनी बच्ची के नाम के लिए भी प्रयोग करते है | इन १०८ नामो का नित्य पाठ करने से व्यक्ति भय से मुक्त और सुखी जीवन का भोगी बन जाता है | यह चमत्कारी नाम इस प्रकार है:-  Durga maa ke 108 दुर्गा देवी 108 नाम  १. सती   २. साध्वी   ३. भवप्रीता   ४. भवानी   ५. भवमोचनी   ६.आर्य   ७. दुर्गा,   ९. जया   १०.आधा   ११. त्रिनेत्रा   १२. शूलधारिणी   १३. पिनाकधारिणी   १४. चित्र   १५.  चंद्रघंटा    १६. महातप   १७. मनः  १८. बुद्धि   १९. अहंकार   २०. चित्तरूपा   २१. चिता   २२. चिति   २३. सर्वमन्त्रमयी    २४. सत्ता   २५. सत्यानन्दस्वरूपिणी   २६.अनंत   २७. भाविनी   २८. भाव्या   २९. अभव्य   ३०. सदगति  ३१. शाम्भ...

Durga-Saptashti-Chapter-11 Gyarhva Adhyay

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Durga-Saptashti-Chapter-11 दुर्गा सप्तशती ग्यारहवाँ अध्याय  (देवताओं का देवी की स्तुति करना और देवी का देवताओं को वरदान देना) महर्षि मेघा कहते है- दैत्य के मारे जाने पर इन्द्रादि देवता अग्नि को आगे करके कात्यायनी  देवी की स्तुति करने लगे, उस समय अभीष्ट की प्राप्ति के कारन उनके मुख खिले हुए थे। देवताओं ने कहा- हे शरणागतों के दुःख दूर करने वाली देवी! तुम प्रसन्न होओ, हे सम्पूर्ण जगत की माता! तुम प्रसन्न होओ । विश्वेश्वरि ! तुम विश्व की रक्षा करो क्योंकि तुम इस चर और अचर की ईश्वरी हो। हे देवी! तुम सम्पूर्ण जगत की आधार रूप हो, क्योंकि तुम पृथ्वी रूप में भी स्थित हो और अत्यंत पराक्रम वाली देवी हो, तुम विष्णु की शक्ति हो और विश्व की बीज परममाया हो और तुमने ही इस सम्पूर्ण जगत को मोहित कर रखा है। तुम्हारे प्रसन्न होने पर ही यह पृथ्वी मोक्ष को प्राप्त होती है, हे देवी! सम्पूर्ण विद्याएँ तुम्हारे ही भिन्न-२ स्वरुप है। इस जगत में जितने स्त्रियां हैं वह सब तुम्हारी ही मूर्तियां हैं। एक मात्र तुमने ही इस जगत को वयाप्त कर रखा है। तुम्हारी स्तुति किस प्रकार हो सकती है, क्योंकि तुम ...

Durga-Saptashti-Chapter-10 Dasva Adhyay

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Durga-Saptashti-Chapter-10 दुर्गा सप्तशती दसवाँ अध्याय  Durga Saptashti- (शुम्भ वध)  महर्षि मेघा ने कहा- हे राजन ! अपने प्यारे भाई को मरा हुआ तथा सेना को नष्ट हुई देखकर क्रोध में भरकर दैत्यराज शुम्भ कहने लगा- दुष्ट दुर्गे! तू अहंकार से गर्व मत कर, क्योंकि तू दूसरों के बल पर लड़ रही है । देवी ने कहा- हे दुष्ट! देख, मैं  तो अकेली ही हूँ। इस संसार में मेरे सिवा दूसरा कौन है? यह सब मेरी शक्तियां है। देख, यह सबकी सब मुझ में प्रविष्ट हो रही है। इस के पश्चात ब्राह्मणी आदि सब देवियाँ उस देवी के शरीर में लीन हो गई और देवी अकेली रह गई, तब देवी ने कहा- मैं अपनी ऐश्वर्य शक्ति से अनेक रूपों में यहाँ उपस्थित हुई थी। उन सब रूपों को मैंने समेट लिया है, अब अकेली ही यहाँ खड़ी हूँ, तुम भी यही ठहरो! महर्षि मेघा ने कहा- तब देवताओं तथा राक्षसों के देखते २ तथा शुम्भ ने भयंकर युद्ध होने लगा। अम्बिका देवी ने सैकड़ों अस्त्र- शस्त्र छोड़े, उधर दैत्यराज ने भी भंयकर अस्त्रों का प्रहार आरंभ कर दिया।  देवी के छोड़े हुए सैकड़ों अस्त्रों को दैत्य ने अपने अस्त्रों द्वारा काट डाला, इसी प्रकार शुम्भ ने जो अस...

Ath Kilak Strotam- अथ कीलक स्त्रोतम

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Ath Kilak Strotam- अथ कीलक स्त्रोतम  महर्षि मर्कण्डजी बोले- निर्मल ज्ञानरूपी शरीर धारण करने वाले, देवत्रीय रूप दिव्या तीन नेत्र वाले, जो कल्याण प्राप्ति दे हेतु है तथा अपने मस्तक पर अध्र्चन्द्र धारण करने वाले है उन भगवान शंकर को नमस्कार है, जो मनुष्य इन कीलक मंत्रो को जानते है, वही पुरुष कल्याण को प्राप्त करता है, जो अन्य मंत्रो  को जप कर केवल सप्तशती स्त्रोत से ही देवी की स्तुति करता है उसको इससे ही देवी की सिद्धि हो जाती है, उन्हें अपने कार्य की सिद्धि की लिए दूसरे की साधना करने की आवश्यकता नहीं रहती । बिना जप के ही उनके उच्चाटन आदि सब काम सिद्ध हो जाते है। लोगों के मन में शंका थी की केवल  सप्तशती की उपासना से अथवा  सप्तशती को छोड़ का अन्य मंत्रों की उपासना से भी समान रूप से सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं, तब इनमें कौनसा श्रेष्ठ साधना है? लोगों की इस शंका को ध्यान में रखकर भगवान शंकर ने अपने पास आए हुए जिज्ञासुओं को समझाया कि यह  सप्तशतीनामक सम्पूर्ण स्त्रौत ही कल्याण को देने वाला है। इसके पच्छात भगवान शंकर ने चण्डिका के  सप्तशती नामक स्त्रौत को गुप्त कर दिया...

Durga Chalisa in hindi

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Durga Chalisa दुर्गा चालीसा  माँ दुर्गा के प्रमुख पर्व 'दुर्गा पूजा' का एक अलग ही महत्त्व है| आदिशक्ति के नाम से प्रसिद्ध माँ दुर्गा की आराधना करनी चाहिए | माँ दुर्गा की साधना के लिए श्री दुर्गा चालीसा को सबसे प्रभावशाली माना जाता है| पुरे नौ दिन तक इस चालीसा की आराधना करना बहुत पवित्र माना जाता है और कहते है कि, इस चालीसा की प्रतेक पंक्ति मनुष्यों के सभी पाप धुलने की क्षमता रखती है| सारे भक्त गण इस पाठ को विभिन्न आशाओं के साथ पढ़ते है| इस चालीसा को पढ़े और परम गति की ओर अपने कदम बढायें| दुर्गा चालीसा प्रारम्भ  नमो नमो दुर्गे सुख करनी | नमो नमो अम्बे दुखहरनी | | निरंकार है ज्योति तुम्हारी | तिहूँ लोक फैली उजियारी | | शशि लिलाट मुख महाविशाला | नेत्र लाल भृकुटी विकराला | | रूप मातु को अधिक सुहावे | दरश करत जन अति सुखपावे | | तुम संसार शक्ति लय कीना | पालन हेतु अन्न धन दीना | | अन्नपूर्णा हुई जगत पाला | तुम ही आदि सुन्दरी बाला | | प्रलयकाल सब नाशन हारी | तुम गौरी शिव शंकर प्यारी | | शिव योगी तुम्हरे गुण गावें | ब्रम्हा विष्णु तुम्हे नित ध्यावें | | रूप सरस्वत...

Maa Durga ke 9 rup

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 माँ दुर्गा के नौ रूप माँ दुर्गा अपने 9 दिनों के नवरात्रि महोत्सव में अपने 9 रूपों के लिए जानी जाती है और दुनिया भर में अपने भक्तो द्वारा पूजी जाती है। नौ दिन की अविधि शुकल पक्ष के दिन से नौवे दिन अश्विना तक सबसे शुभ समय माना जाता है,और इसलिए दुर्गा पूजा के रूप में वर्ष की सबसे मशहूर समय माना जाता है। नौ रूप नौ दिन तक लगातार अलग अलग पूजे जाते है। देवी दुर्गा के नौ रूप कौन कौन से है ? 1. शैलपुत्री (पर्वत की बेटी) वह पर्वत हिमालय की बेटी है और नौ दुर्गा में पहली रूप है । पिछले जन्म में वह राजा दक्ष की पुत्री थी। इस जन्म में उसका नाम सती-भवानी था और भगवान शिव की पत्नी । एक बार दक्षा ने भगवान शिव को आमंत्रित किए बिना एक बड़े यज्ञ का आयोजन किया था देवी सती वहा पहुँच गयी और तर्क करने लगी। उनके पिता ने उनके पति (भगवान शिव) का अपमान जारी रखा था ,सती भगवान् का अपमान सहन नहीं कर पाती और अपने आप को यज्ञ की आग में भस्म कर दी | दूसरे जन्म वह हिमालय की बेटी पार्वती- हेमावती के रूप में जन्म लेती है और भगवान शिव से विवाह करती है। 2. भ्रमाचारिणी (माँ दुर्गा का शांति पूर्ण रूप) दूसरी उपस्तिथि नौ ...