Yogini Ekadashi Vrat Katha

योगिनी एकादशी आषाढ़ कृष्ण


भगवान विष्णुजी को एकादशी तिथि अति प्रिय है इसलिए जो लोग किसी भी पक्ष की एकादशी का व्रत करते हैं तथा अपनी सामर्थ्य अनुसार दान-पुण्य करते हैं वह अनेक प्रकार के सांसारिक सुखों का भोग करते हुए अंत में प्रभु के परमधाम को प्राप्त होते हैं।

आषाढ़ कृष्ण एकादशी को योगिनी एकादशी के रूप में जाना जाता है। योगिनी एकादशी का महत्व तीनों लोकों में प्रसिद्ध है। श्राप से मुक्ति पाने के लिए यह व्रत कल्पतरु के समान है। योगिनी एकादशी व्रत के प्रभाव से हर प्रकार के चर्म रोग और दुखों से मुक्ति मिलती है। 

योगिनी एकादशी का व्रत रखने वाले उपासक को अपना मन स्थिर एवं शांत रखना चाहिए। किसी भी प्रकार की द्वेष भावना या क्रोध मन में न लाएं। दूसरों की निंदा न करें। इस एकादशी पर श्री लक्ष्मी नारायण का पवित्र भाव से पूजन करना चाहिए। भूखे को अन्न तथा प्यासे को जल पिलाना चाहिए। योगिनी एकादशी पर रात्रि जागरण का बड़ा महत्व है। रात में जागकर भगवान का भजन कीर्तन करने की मान्यता है। 

योगिनी एकादशी व्रत कथा
पद्मपुराण के अनुसार, अलकापुरी में यक्षों के राजा शिवभक्त कुबेर के लिए प्रतिदिन हेम नामक माली अर्द्धरात्रि में फूल लेने मानसरोवर जाता और प्रात: राजा कुबेर के पास पहुंचाता था। एक दिन हेम माली रात्रि को फूल तो ले आया परंतु वह अपनी पत्नी के प्रेम के वशीभूत होकर घर पर विश्राम के लिए रुक गया। प्रात: काल जब राजा कुबेर के पास भगवान शिव की पूजा के लिए फूल नहीं पहुंचे तो उन्होंने हेम माली को श्राप दे दिया कि तुझे स्त्री वियोग सहना होगा। मृत्युलोक में कुष्ठ रोगी होकर रहना होगा। कुबेर के श्राप से हेम माली स्वर्ग से पृथ्वी पर जा गिरा और कुष्ठ रोगी हो गया। एक दिन वह भटकते हुए मार्कंडेय ऋषि के आश्रम में पहुंचा। ऋषि मार्कंडेय ने उसे आषाढ़ मास की योगिनी एकादशी का व्रत सच्चे भाव से करने को कहा। हेम माली ने व्रत किया तथा उसे श्राप से मुक्ति मिली।

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