Brahaspativar Vrat katha- Guruvar-Jupiter Planet

बृहस्पतिवार व्रत कथा 

brihaspativar vrat katha

गुरूवार या वीरवार को भगवान बृहस्पति की पूजा का विधान है| बृहस्पति देवता को बुद्धि और शिक्षा का देवता माना जाता है| गुरूवार को बृहस्पति देव की पूजा करने से धन, विद्या, पुत्र तथा मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है| परिवार में सुख तथा शांति रहती है| गुरूवार का व्रत जल्दी विवाह करने के लिये भी किया जाता है|


बृहस्पतिवार व्रत की विधि : 

गुरूवार की पूजा करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि पूजा विधि-विधान के अनुसार हो| व्रत वाले दिन प्रात: काल उठकर बृहस्पति देव का पूजन करना चाहिए| वृ्हस्पति देव का पूजन पीली वस्तुएं, पीले फूल, चने की दान, पीली मिठाई, पीले चावल आदि का भोग लगाकर किया जाता है|  इस व्रत में केले का पूजन ही करें. कथा और पूजन के समय मन, कर्म और वचन से शुद्घ होकर मनोकामना पूर्ति के लिये वृहस्पतिदेव से प्रार्थना करनी चाहिए| दिन में एक समय ही भोजन करें| भोजन चने की दाल आदि का करें, नमक न खा‌एं, पीले वस्त्र पहनें, पीले फलों का प्रयोग करें, पीले चंदन से पूजन करें. पूजन के बाद भगवान बृहस्पति की कथा सुननी चाहिये| 


बृहस्पतिवार व्रत कथा 

एक बार किसी गांव में एक साहूकार रहता था, जिसके घर में अन्न, वस्त्र और धन की कोई कमी नहीं थी| लेकिन उसकी पत्नी बहुत ही कृपण थी| कभी किसी भिक्षार्थी को कुछ भी खाने को नहीं देती थी| बस, सारा दिन घर के काम काज में लगी रहती थी| एक समय एक साधु- महात्मा बृहस्पति वार वाले दिन उसके घर पर भिक्षा लेने पुँहचे तो वह स्त्री उस समय घर के आँगन को लीप रही थी, इस कारण साधु महाराज से कहने लगी कि महाराज इस समय तो में घर को लीप रही हूँ आपको कुछ नहीं दे सकती, फिर किसी अवकाश समय आना| साधु महात्मा खाली हाथ चले गए| कुछ दिन पश्चात वही साधु महात्मा फिर आए और उसी तरह भिक्षा माँगी| साहूकारनी उस समय अपने लड़के को खाना खिला रही थी| साधु जी से कहने लगी कि- महाराज मैं क्या करूँ अवकाश नहीं है, इसलिए भिक्षा नहीं दे सकती| तीसरी बार महात्मा आए तो उसने उन्हें उसी तरह टालना चाहा परन्तु महात्मा जी कहने लगे कि तुमको बिलकुल ही अवकाश हो जाए तो क्या मुझको दोगी ? साहूकारनी कहने लगी कि हाँ महाराज यदि ऐसा हो जाए तो आपकी बड़ी कृपा होगी| साधु- महात्मा जी कहने लगे कि अच्छा मैं एक उपाय बताता हूँ| तुम बृहस्पतिवार को दिन चढ़े उठो और सारे घर में झाड़ू लगा कर कूड़ा एक कोने में जमा करके रख दो|

घर में चौका इत्यादि मत लगाओ | फिर स्नान आदि करके घर वालों से कह दो, उस दिन सब हजामत अवश्य बनवाये| रसोई बनाकर चूल्हे के पीछे रखा करो, सामने कभी मत रखो| सांयकाल को अँधेरा होने पर दीपक जलाओ तथा बृहस्पतिवार को पीले वस्त्र मत धारण करो, न पीले रंग की चीजों का भोजन करो | यदि ऐसा करोगे तो तुमको घर का कोई काम नहीं करना पड़ेगा| साहूकारनी ने ऐसा ही किया| बृहस्पतिवार को दिन चढ़े उठी, झाड़ू लगाकर कूड़े को एक कोने में जमा करके रखा दिया| पुरुषों ने हजामत बनवाई | भोजन बनाकर चूल्हे के पीछे रखा गया| वह सब बृहस्पतिवार को ऐसा ही करती रही| अब कुछ काल उपरांत उसके घर में खाने को दाना न रहा| कुछ समय बाद वही महात्मा फिर आए और भिक्षा मांगी परन्तु साहूकारनी ने कहा - महाराज मेरे घर में खाने को अन्न नहीं है, आपको क्या सकती हूँ| तब महात्मा ने कहा कि जब तुम्हारे घर में सब कुछ था तब भी कुछ नहीं देती थी| अब पूरा- पूरा अवकाश है तब भी कुछ नहीं दे रही हो, तुम क्या चाहती हो वह कहो? तब साहूकारनी ने हाथ जोड़ कर कहा की महाराज अब कोई ऐसा उपाय बताओ की मेरा पहले जैसा धन-धान्य हो जाय| अब मैं प्रतिज्ञा करती हूँ कि अवश्यमेव आप जैसा कहेगे वैसा ही करुँगी| तब महात्मा जी बोले- बृहस्पतिवार को प्रातःकाल उठकर स्नान अदि से निवृत हो घर को गौ के गोबर से लिपो तथा घर के पुरुष हजामत न बनवाये| भूखो को अन्न- जल देती रहा करो| ठीक सांय काल दीपक जलाओ| यदि ऐसा करोगी तो तुम्हारी  सब मनोकामनाएं भगवन बृहस्पति जी की कृपा से पूर्ण होगी| साहूकारनी ने ऐसा ही किया और उसके घर में धन-धान्य वैसा हो होगा जैसा पहले था| इस प्रकार भगवान बृहस्पति जी की कृपा से अनेक प्रकार के सुख भोगकर दीर्घ काल तक जीवित रही|

बृहस्पतिवार व्रत कथा समाप्त 

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