shukravar vrat katha in hindi ( santoshi mata ka vrat katha)

शुक्रवार व्रत पूजा विधि (संतोषी माता)

santoshi maa | santoshi mata ki vrat katha in hindi

संतोषी माता का व्रत शुक्रवार को किया जाता है। शुक्रवार को सुर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि करके, मंदिर में जाकर ( या अपने घर पर संतोषी माता का चित्र या मुर्ति रखकर) संतोषी माता की पूजा करें । पूजा के समय एक कलश में ताजा स्वच्छ जल भरकर रखें। उस कलश पर एक पात्र रखें और उस पात्र में गुड़ और चने भरकर रखें। घी का दीपक जलाकर संतोषी माता की कथा सुनें या स्वयं पुस्तक पढ़कर उपस्थित भक्तजनों को व्रत्कथा सुनाएँ। संतोषी माता की व्रत कथा को सुनते अथवा दूसरों को सुनाते समय गुड़ और भूने हुए चने हाथ में रखें। व्रत्कथा समाप्त होने पर “संतोषी माता की जय” बोलकर उठें और हाथ में लिए हुए गुड़ और चने गाय को खिलाएँ। कलश पर रखे गए पात्र के गुड़ और चने को प्रसाद के रूप में उपस्थित सभी स्त्री-पुरुषों और बच्चों में बाँट दें। कलश के जल को घर के कोने-कोने में छिड़ककर घर को पवित्र करें। शेष बचे हुए जल को तुलसी के पौधे में डाल दें।

शुक्रवार व्रत पूजा सामग्री 

  • घी का दिया
  • कलश पात्र
  • चना
  • गुड़
  • संतोषी माता की मूर्ति अथवा चित्र
  • धूप

संतोषी माँ की व्रत कथा:

बहुत समय पहले की बात है। एक बुढि़या के सात पुत्र थे। उनमें से 6 कमाते थे और एक निकम्मा था। बुढि़या अपने 6 बेटों को प्रेम से खाना खिलाती और सातवें बेटे को बाद में उनकी थाली की बची हुई जूठन खिला दिया करती। सातवें बेटे की पत्नी इस बात से बड़ी दुखी थी क्योंकि वह बहुत भोला था और ऐसी बातों पर ध्यान नहीं देता था। एक दिन बहू ने जूठा खिलाने की बात अपने पति से कही पति ने सिरदर्द का बहाना कर, रसोई में लेटकर स्वयं सच्चाई देख ली। उसने उसी क्षण दूसरे राज्य जाने का निश्चय किया। जब वह जाने लगा, तो पत्नी ने उसकी निशानी मांगी। पत्नी को अंगूठी देकर वह चल पड़ा। दूसरे राज्य पहुंचते ही उसे एक सेठ की दुकान पर काम मिल गया और जल्दी ही उसने मेहनत से अपनी जगह बना ली। इधर, बेटे के घर से चले जाने पर सास-ससुर बहू पर अत्याचार करने लगे। घर का सारा काम करवा के उसे लकड़ियां लाने जंगल भेज देते और आने पर भूसे की रोटी और नारियल के खोल में पानी रख देते। इस तरह अपार कष्ट में बहू के दिन कट रहे थे। एक दिन लकडि़यां लाते समय रास्ते में उसने कुछ महिलाओं को संतोषी माता की पूजा करते देखा और पूजा विधि पूछी। उनसे सुने अनुसार बहू ने भी कुछ लकडि़यां बेच दीं और सवा रूपए का गुड़-चना लेकर संतोषी माता के मंदिर में जाकर संकल्प लिया। दो शुक्रवार बीतते ही उसके पति का पता और पैसे दोनों आ गए। बहू ने मंदिर जाकर माता से फरियाद की कि उसके पति को वापस ला दे। उसको वरदान दे माता संतोषी ने स्वप्न में बेटे को दर्शन दिए और बहू का दुखड़ा सुनाया। इसके साथ ही उसके काम को पूरा कर घर जाने का संकल्प कराया। माता के आशीर्वाद से दूसरे दिन ही बेटे का सब लेन-देन का काम-काज निपट गया और वह कपड़ा-गहना लेकर घर चल पड़ा। बेटा अपनी पत्नी को लेकर दूसरे घर में ठाठ से रहने लगा| 


वहां बहू रोज लकडि़यां बीनकर माताजी के मंदिर में दर्शन कर अपने सुख-दुख कहा करती थी। एक दिन माता ने उसे ज्ञान दिया कि आज तेरा पति लौटने वाला है। तू नदी किनारे थोड़ी लकडि़यां रख दे और देर से घर जाकर आंगन से ही आवाज लगाना कि सासूमां, लकडि़यां ले लो और भूसे की रोटी दे दो, नारियल के खोल में पानी दे दो। बहू ने ऐसा ही किया। उसने नदी किनारे जो लकडि़यां रखीं, उसे देख बेटे को भूख लगी और वह रोटी बना-खाकर घर चला। घर पर मां द्वारा भोजन का पूछने पर उसने मना कर दिया और अपनी पत्नी के बारे में पूछा। तभी बहू आकर आवाज लगाकर भूसे की रोटी और नारियल के खोल में पानी मांगने लगी। बेटे के सामने सास झूठ बोलने लगी कि रोज चार बार खाती है, आज तुझे देखकर नाटक कर रही है। यह सारा दृश्य देख बेटा अपनी पत्नी को लेकर दूसरे घर में ठाठ से रहने लगा।

खट्टा खाने की मनाही

शुक्रवार आने पर पत्नी ने उद्यापन की इच्छा जताई और पति की आज्ञा पाकर अपने जेठ के लड़कों को निमंत्रण दे आई। जेठानी को पता था कि शुक्रवार के व्रत में खट्टा खाने की मनाही है। उसने अपने बच्चों को सिखाकर भेजा कि खटाई जरूर मांगना। बच्चों ने भरपेट खीर खाई और फिर खटाई की रट लगाकर बैठ गए। ना देने पर चाची से रूपए मांगे और इमली खरीद कर खा ली। इससे संतोषी माता नाराज हो गई और बहू के पति को राजा के सैनिक पकड़कर ले गए। बहू ने मंदिर जाकर माफी मांगी और वापस उद्यापन का संकल्प लिया। इसके साथ ही उसका पति राजा के यहां से छूटकर घर आ गया। अगले शुक्रवार को बहू ने ब्राह्मण के बच्चों को भोजन करने बुलाया और दक्षिणा में पैसे ना देकर एक- एक फल दिया। इससे संतोषी माता प्रसन्न हुईं और जल्दी ही बहू को एक सुंदर से पुत्र की प्राप्ति हुई। बहू को देखकर पूरे परिवार ने संतोषी माता का विधिवत पूजन शुरू कर दिया और अनंत सुख प्राप्त किया।


मनोकामना पूरी होने पर उद्यापन अवश्य करें

इसी विधि से तब तक व्रत करते रहें, जब तक आपकी मनोकामना पूरी ना हो जाए। मनोकामना पूरी होने पर उद्यापन अवश्य करें। उद्यापन के लिए ढाई सेर खाजा, मोयनदार पूड़ी, ,खीर, चने की सब्जी और नैवेद्य रखें। घी का दीपक जला कर संतोषी माता की कथा कह, जयकारा लगाकर नारियल फोड़ें। इस दिन घर में कोई खटाई ना खाए, ना ही किसी को कुछ भी खट्टा दें। इस दिन 8 लड़कों को भोजन कराएं। लड़के अपने कुटुंब के हों तो अच्छा, ना हो तो ब्राह्मण बालकों, रिश्तेदारों, पड़ोसियों के लड़कों को बुलाएं। भोजन कराके यथाशक्ति दक्षिणा दें, जिसमें पैसे के स्थान पर कोई फल देना अधिक अच्छा होता है। इस तरह विधिपूर्वक पूजा- उद्यापन से घर में संतोषी माता की कृपा सदैव बनी रहती है।

शुक्रवार व्रत की आरती (संतोषी माता की आरती)


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