Bhagwat Geeta Chapter-9 - Geeta Path in Hindi

भागवत गीता नवां अध्याय 

geeta,bhagwat geeta,bhagwat geeta in hindi,bhagwat geeta saar in hindi,bhagwad geeta,bhagavad gita,shrimad bhagwat geeta,bhagavad geeta,geeta path,bhagwat geeta shlok,bhagwat gita,bhagvat geeta,bhagavad gita (religious text),geeta saar,shrimad bhagwat geeta katha,srimad bhagavad gita,bhagawat geeta,bhagwat geeta part 1,gita path,bhagwat geeta saar

श्री कृष्णजी बोले हे अर्जुन ! तुम में ईर्षा नहीं है, इसलिए यह अतिगुप्त शास्त्रीय ज्ञानऔर अनुभव तुमसे कहता हूँ इसे जानकर तुम्हारा अशुभ न होगा| यह ज्ञान सब विद्याओं में श्रेष्ठ तथा सब गोपनीयों में गुप्त, एवं परम पवित्र, उतर प्रत्यक्ष फल वाला और धर्म युक्त है, साधन करने में बड़ा सुगम और नष्ठ नहीं होता| हे परंतप इस धर्म पर जो श्रद्धा नहीं रखते वे मुझे नहीं  और इस मृत्यु युक्त संसार में बार-बार लौटते हैं| मैं अव्यक्त हूँ और मैनें ही यह सब जगत प्रगट किए है सब प्राणी मुझमे सिथत है किन्तु मैं उनमे नहीं हूँ| मुझमे सब भूत भी नहीं हैं, मेरा वह ईश्वरीय कर्म देखो मेरी ही आत्मा सब भूतों का पालन करती हुई भी नियत नहीं है| जिस  सर्वत्र बहने वाली महान वायु समस्त आकाश में व्याप्त है इसी प्रकार समस्त भूत मुझमे है ऐसा समझो| हे कौन्तेय ! सभी जिव कल्प के प्रारम्भ में मैं उनको फिर उत्पन्न करता हूँ| अपनी प्रकृति का आश्रय लेकर उसके गुण व स्वभाव वाले स्वभाव वाले समस्त भूत वर्ग को मैं बारम्बार उत्पन्न करता हूँ| हे धनज्जय ! मेरे ये कर्म मुझे नहीं बांधते क्योँकि मैं उदासीन की तरह इनमे आसक्त नहीं हूँ और सिथत हूँ मैं अध्यक्ष होकर प्रकृति द्वारा चराचर जगत को उत्पन्न करता हूँ, हे कौन्तेय ! इसी कारण यह जगत बनता बिगड़ता रहता है| मुर्ख लोग मेरे परम स्वरूप को नहीं जानते कि मैं समस्त चराचर का स्वामी हूँ वे मुझको मनुष्य जानकर मेरी अवहेलना करते है उनकी आशा व्यर्थ कर्म निष्फल ज्ञान निरर्थक चित भष्ट हैं वे उस आसुरी प्रकृति के वश में हैं जो मोह को उत्पन्न करती है| हे पार्थ ! विवेकजण जो दैव प्रकृति में सिथत है वे मुझे सब संसार का आदि अविनाशी जानकर अनन्य मनसे भजते है वे दृढं व्रत सदा मेरा यत्न पर्वक कीर्तन उपासना करते है| कई लोग ज्ञान योग से पूजन करते हुए मेरी उपासना करते है| कोई पृथक्त्व से और कोई मुझे अनेक रूप वाला विश्व रूप मानकर उपासना करते हैं| श्रौत यज्ञ मैं हूँ स्मार्त यज्ञ मैं हूँ और पितृयज्ञ मैं हूँ तथा औषधि मन्त्र होम का साधन धृत अग्नि और होम भी मैं ही हूँ| इस जगत का पिता, माता धारण कर्ता, पितामह जानने योग्य पदार्थ, ॐ कर , ऋग्वेद, सामवेद, और यजुर्वेद मैं हूँ| गति, पालनकर्ता, प्रभु, साक्षी निवास स्थान रक्षक, मित्र, उत्पन्न करने वाला संस्कारक, आधार, प्रलय स्थान और अविनाशी बीज मैं हूँ, मैं सूर्यरूप से तपता मैं ही वर्षा करता हूँ, तथा हे अर्जुन! मैं ही अमृत और मृत्यु भी हूँ, तथा सत और असत भी हूँ| तीनो वेदों के ज्ञाता सोम पीने वाले पाप रहित यज्ञ द्वारा मेरी पूजा करके स्वर्ग चाहते हैं और इंद्र के पुण्य लोक में पहुचकर स्वर्ग में देवताओं के योग्य दिव्य सुख भोगते है, वे विशाल स्वर्ग लोक में सुख भोगकर पुण्य के शीर्ण होने पर फिर मृत्यु लोक में आते हैं इस प्रकार तीनों वेदों के यज्ञादि धर्मों का पालन करने वाले भोग की इच्छा रखने वालों का आवागमन होता रहता है| जो अनन्य भाव से चिंतन करते हुए मेरी उपासना करते है उन नित्य योगियों के योग क्षेम अर्थात स्थान भोजन आच्छांदित इनकी मैं रक्षा करता हूँ हे कौन्तेय ! जो दूसरे देवताओं के भक्त हैं और श्रद्धा से उन्हें पूजते वे भी मेरा ही पूजन करते है परन्तु यह पूजन विधि पूरक नहीं है| सब यज्ञों का भोक्ता और स्वामी मैं ही हूँ जो मेरे इस तत्व को नहीं जानते है वे आवगमन से नहीं छूटते है| देवताओं का पूजन वाले देवलोक को प्राप्त होते है पितरों के पूजन वाले पितृ लोक को पाते है, यज्ञादिको के पुजारी यज्ञ लोक को जाते है और मेरा पूजन करने वाले मुझे प्राप्त होते है, भक्ति से पत्र, पुष्प, फल, जल, को मुझको अर्पण करता है, उस शुद्ध अंतकरण वाले व्यक्ति के भक्ति से दिय हुए पदार्थ को मैं बड़ी प्रसन्नता से ग्रहण करता हूँ| हे कौन्तेय ! जो तुम कहते हो, खाते हो, तप करते हो सब मेरे अर्पण करो| ऐसा करने से कर्मबन्धन रूप शुभ अशुभ फलों से मुक्त हो जाओगे| सन्यास योग में युक्त होकर मुक्ति या मुझको अवश्य पाओगे| मैं समस्त भूतों में समान हूँ न कोई मुझे अप्रिय प्रिय जो कोई मुझको भक्ति से भजता है वह मुझमे है और मैं उसमे हूँ| यदि कोई दुराचारी भी हो और अनन्य भाव से मेरा भजन करे उसको मैं साधु ही मानता हूँ क्योँकि उसने उत्तम मार्ग ग्रहण किया है वह शीघ्र ही धर्मात्मा होता है और चिर स्थायी शांति को पाता है हे कौन्तेय ! यह निश्चय करके जानो की मेरा भक्त कभी नाश को प्राप्त नहीं होता| हे पार्थ ! मेरा आश्रय पाकर निचे कुल में उत्पन्न स्त्रियाँ, वैश्य और शुद्ध भी उत्तम गति को पाते हैं| फिर जो पुण्यवान, भक्त राजऋषि और ब्रह्मण हैं उनकी तो बात ही क्या है| अतः इस नाशवान और दुःख भरे संसार में जन्म पाकर तुम मेरा ही भजन करो | मुझमें मन लगा मेरा भक्त बन मेरी पूजा और मुझे नमस्कार कर मुझमें लो लगाय रहकर मुझमे लय हो जाओगे| 


||भागवत गीता पाठ नवम अध्याय  समाप्तम  || 
अथ नवों अध्याय का माहात्म्य 
श्री नारायण बोले - हे लक्ष्मी ! दक्षिण देश में एक भाव सुशर्मा नामक शूद्र रहता था, बड़ा पापी मांस मदिरा आहारी था| जुआ खेले, चोरी करे, पर स्त्री रमै, एक दिन मदिरापान से तिसकी देह छूटी वह मरकर प्रेत हुआ एक बड़े वृक्ष पर रहे, एक ब्राह्मण भी उसी नगर में रहता था, दिन को भिक्षा मांग कर स्त्री को ला देवे उसकी स्त्री बड़ी कल्हनी थी समय पाकर उन दोनो ने प्राण त्यागे वह दोनों मर कर प्रेत हुए, वह भी उसी वृक्ष के तले आ रहे जहाँ प्रेत रहता था वहां रहते-रहते कुछ काल व्यतीत हुआ| एक दिन उसकी स्त्री पिशाचिनी ने कहा हे, पुरुष पिशाचिनी तुझको कुछ पिछले जन्म की खबर है| तब पिशाच ने कहा कि खबर है, मैं पिछले जन्म में ब्राह्मण था, तब पिशाचिनी ने कहा तूने पिछले जन्म में क्या साधन करी थी जिससे तुझको पिछले जन्म की खबर है| तब उसने कहा, मैंने पिछले जन्म में एक ब्राह्मण से आध्यत्म कर्म सुना था| तब फिर पिशाचिनी ने कहा तूने और कौन साधना करी थी और वह ब्रह्मण कौन था और वह और ब्राह्मण कौन था और वह आध्यत्म कर्म कौन है जिसकी सुनने से तुझे पिछले जन्म की खबर रही| पिशाच ने कहा मैंने और कोई पुण्य नहीं किया| गीता जी का श्लोक श्रवण किया है उसका प्रयोजन यह है| एक समय अर्जुन ने श्री कृष्ण से तीन बाटे पूछी जो गीता जी के नवम अध्याय में लिखी है वह तीन बात पिशाचिनी ने पिशाच से श्रवण करी इन बातों के सुनते ही एक और प्रेत वृक्ष से निकला उसने कहा, री -पिशाचिनी यह तीन बातें फिर कहो जो अब कह रही थी पिशाचिनी ने कहा तू कौन है मैं तुझको नहीं सुनती मैं अपने भर्ता से पूछती हूँ| वह कर्म कौन सा था जिससे पिछले जन्म की खबर रही इन बातों के सुनते ही प्रेत देह तीनों की छूटी तत्काल देवदेहि पाई स्वर्ग से विमान आय उन पर चढ़कर बैकुंठ को प्राप्त हुए श्री नारायण जी ने कहा हे लक्ष्मी ! यह नवम अध्याय का माहात्म्य है| 
|| भागवत गीता समाप्तम || 

Comments

Popular posts from this blog

20 Lord Murugan Adbhut HD Pictures and Wallpapers

26 Lord Ayyappa HD God Wallpapers and Images

10+ God Karuppasamy Adbhut Photos in HD