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Showing posts from September, 2017

kaise kare kanya puja navratri mein

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कन्या पूजन विधि नवरात्रि में नवरात्र पर्व के आठवें और नौवें दिन कन्या पूजन और उन्हें घर बुलाकर भोजन कराने का विधान होता है| दुर्गाष्टमी और नवमी के दिन आखरी नवरात्रों में इन कन्याओ को नौ देवी स्वरुप मानकर इनका स्वागत किया जाता है | माना जाता है की इन कन्याओ को देवियों की तरह आदर सत्कार और भोज से माँ दुर्गा प्रसन्न हो जाती है और अपने भक्तो को सुख समृधि का वरदान दे जाती है | दुर्गाष्टमी और नवमी के दिन कन्या पूजन क्यों और कैसे किया जाता है? नवरात्र पर्व के दौरान कन्या पूजन का बडा महत्व है| नौ कन्याओं को नौ देवियों के प्रतिविंब के रूप में पूजने के बाद ही भक्त का नवरात्र व्रत पूरा होता है| अपने सामर्थ्य के अनुसार उन्हें भोग लगाकर दक्षिणा देने मात्र से ही मां दुर्गा प्रसन्न हो जाती हैं और भक्तों को उनका मनचाहा वरदान देती हैं| नवरात्रे के किस दिन करें कन्या पूजन : कुछ लोग नवमी के दिन भी कन्या पूजन और भोज रखते हैं और कुछ लोग अष्टमी के दिन | हमारा मानना है की अष्टमी के दिन कन्या पूजन श्रेष्ठ रहता है | कन्या पूजन विधि जिन कन्याओ को भोज पर खाने के लिए बुलाना है, उन्हें एक दिन पहले ही न्योता दे | म

Santoshi Maa | Santoshi mata ki aarti

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संतोषी माता जी की आरती  जय संतोषी माता, मैया जय संतोषी माता । अपने सेवक जन को, सुख संपति दाता ॥ जय सुंदर चीर सुनहरी, मां धारण कीन्हो । हीरा पन्ना दमके, तन श्रृंगार लीन्हो ॥ जय गेरू लाल छटा छवि, बदन कमल सोहे । मंद हँसत करूणामयी, त्रिभुवन जन मोहे ॥ जय स्वर्ण सिंहासन बैठी, चंवर ढुरे प्यारे । धूप, दीप, मधुमेवा, भोग धरें न्यारे ॥ जय गुड़ अरु चना परमप्रिय, तामे संतोष कियो। संतोषी कहलाई, भक्तन वैभव दियो ॥ जय शुक्रवार प्रिय मानत, आज दिवस सोही । भक्त मण्डली छाई, कथा सुनत मोही ॥ जय मंदिर जगमग ज्योति, मंगल ध्वनि छाई । विनय करें हम बालक, चरनन सिर नाई ॥ जय भक्ति भावमय पूजा, अंगीकृत कीजै । जो मन बसे हमारे, इच्छा फल दीजै ॥ जय दुखी, दरिद्री ,रोगी , संकटमुक्त किए । बहु धनधान्य भरे घर, सुख सौभाग्य दिए ॥ जय ध्यान धर्यो जिस जन ने, मनवांछित फल पायो । पूजा कथा श्रवण कर, घर आनंद आयो ॥ जय शरण गहे की लज्जा, राखियो जगदंबे । संकट तू ही निवारे, दयामयी अंबे ॥ जय संतोषी मां की आरती, जो कोई नर गावे । ॠद्धिसिद्धि सुख संपत्ति, जी भरकर पावे ॥ Jai Santoshi Mata Aarti is the English devotional bhajan song dedicated to Ma

Vindhyeshwari chalisa in hindi

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श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा माँ विन्ध्येश्वरी रूप भी माता का एक भक्त वत्सल रूप है और कहा जाता है कि यदि कोई भी भक्त थोड़ी सी भी श्रद्धा से माँ कि आराधना करता है तो माँ उसे भक्ति – मुक्ति सहज ही प्रदान कर देती हैं । विन्ध्येश्वरी चालीसा का संग्रह किया गया है। श्री विन्ध्येश्वरी चालीसा प्रारम्भ  नमो नमो विन्ध्येश्वरी, नमो नमो जगदम्ब ।  सन्त जनों के काज हित, करतीं नहीं विलम्ब ॥ जय जय जय विन्ध्याचल रानी । आदिशक्ति जग विदित भवानी ॥ सिंहवाहिनी जय जग माता । जय जय जय त्रिभुवन सुखदाता ॥ कष्ट निवारिनि जय जग देवी । जय जय जय असुरासुर सेवी ॥ महिमा अमित अपार तुम्हारी । शेष सहस-मुख बरनत हारी ॥ दीनन के दुःख हरत भवानी । नहिं देख्यो तुमसम कौउ दानी ॥ सबकर मनसा पुरवत माता । महिमा अमित जगत विख्याता ॥ जो जन ध्यान तुम्हारी लावै । सो तुरतहिं वांछित फल पावै ॥ तुम्हीं वैष्णवी औ’रुद्रानी । तुमही शारद औ’ ब्रह्मानी ॥ रमा राधिका श्यामा काली । मातु सदा सन्तन प्रतिपाली ॥ उमा माधवी चण्डी ज्वाला । बेगि मोहि पर होहु दयाला ॥ तुमही हिंगलाज महरानी । तुम्हीं शीतला अरु बिज्ञानी ॥ तुमहीं लक्ष्मी जग सुखदाता । दुर्गा दुर्ग बिनाशि

Guruji-Bade Mandir Chattarpur

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गुरूजी - बड़े मंदिर छत्तरपुर  गुरुजी - जैसा कि हम जानते हैं - 7 जुलाई, 1 9 52 को पंजाब के संगरूर जिले में दुगरी गांव में निर्मल सिंहजी महाराज के रूप में उनके मर्त्य अवतार में पैदा हुआ था।  आध्यात्मिक के लिए गुरुजी के आकर्षण की सबसे प्रारंभिक ज्ञात घटनाओं में से एक ने दुगारी में संत सेवा दासजी के डेरा में समय व्यतीत किया था। संतजी उच्च संतान के संत थे, जिन्होंने सांसारिक जीवन को त्याग दिया था और एक बड़े निम्नलिखित किया था। गुरुजी अक्सर जाकर परिवार के नापसंद होने के कारण डेरा में बैठते थे और चाहते थे कि संतों के बीच बैठने के बजाय अध्ययन करने में उन्हें समय व्यतीत करना चाहिए।  कभी-कभी उसे कमरे के अंदर बंद कर दिया जाता था, लेकिन जल्द ही वे इसे अनलॉक कर पाएंगे और गुरुजी को डेरा में साधुओं के साथ बैठना पाया जाएगा। ऋषि अक्सर लोगों को अकेले युवा गुरुजी को छोड़ने के लिए कहेंगे क्योंकि वह 'सभी तीन लोकों का स्वामी' था और उन्हें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। गुरुजी के सहपाठियों ने अपनी उंगली से उन्हें छूकर खाली इनकपॉट भरने की अपनी प्रसिद्ध उपलब्धि को याद किया। एक बार एक परीक्षा में एक सहपाठ ने

Ravivar vrat katha in hindi | Surya Dev Katha

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रविवार व्रत कथा और विधि  सूर्य देव जी की कथा रविवार का दिन भगवान सूर्य जी का होता है| इस दिन सूर्य देव जी की पूजा विधि पूर्वक की जाती है| आइये जानते है प्रभु सूर्य देव की कथा और विधि|  रविवार अथवा सूर्य भगवान की कथा  प्राचीन काल में एक बुढ़िया रहती थी| वह नियमित रूप से रविवार का व्रत करती| रविवार के दिन सूर्योदय से पहले उठकर बुढ़िया स्नानादि से निवृत्त होकर आंगन को गोबर से लीपकर स्वच्छ करती, उसके बाद सूर्य भगवान की पूजा करते हुए रविवार व्रत कथा सुन कर सूर्य भगवान का भोग लगाकर दिन में एक समय भोजन करती| सूर्य भगवान की अनुकम्पा से बुढ़िया को किसी प्रकार की चिन्ता व कष्ट नहीं था| धीरे-धीरे उसका घर धन-धान्य से भर रहा था|  उस बुढ़िया को सुखी होते देख उसकी पड़ोसन उससे बुरी तरह जलने लगी. बुढ़िया ने कोई गाय नहीं पाल रखी थी| अतः वह अपनी पड़ोसन के आंगन में बंधी गाय का गोबर लाती थी| पड़ोसन ने कुछ सोचकर अपनी गाय को घर के भीतर बांध दिया. रविवार को गोबर न मिलने से बुढ़िया अपना आंगन नहीं लीप सकी| आंगन न लीप पाने के कारण उस बुढ़िया ने सूर्य भगवान को भोग नहीं लगाया और उस दिन स्वयं भी भोजन नहीं किया| सूर्यास्त होन

Shanivar Vrat Katha in Hindi (Shanidev)

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 शनिवार व्रत कथा और पूजा विधि  शनिवार को शनिदेव जी का दिन होता है | शनि जो कि बहुत ही न्यायप्रिय देवता हैं और जो जैसा कर्म करता है उसे वैसा ही फल प्रदान करते हैं। लेकिन शनि को ;पापी ग्रह माना जाता है और उनकी टेढ़ी नज़र से बचने के लिये हर कोई दुआ मांगता है। सप्ताह के दिनों में भी शनिवार का बहुत अधिक महत्व माना जाता है। जो भी जातक शनिदेव के प्रकोप से पीड़ित होते हैं ज्योतिषाचार्य उन्हें शनिवार को शनिदेव की पूजा करने व व्रत रखने की सलाह देते हैं। तो आइये जानते हैं शनिवार की व्रत कथा व पूजा विधि के बारे में।   शनिवार व्रत पूजा विधि शनिदोष से मुक्ति पाने के लिये मूल नक्षत्र युक्त शनिवार से आरंभ करके सात शनिवार शनिदेव की पूजा करनी चाहिये और व्रत रखने चाहिये। ऐसा करने से शनिदेव की कृपा बनी रहती है। व्रत के लिये शनिवाह को प्रात:काल उठकर स्नान करना चाहिये और तत्पश्चात भगवान हनुमान व शनिदेव की आराधना करते हुए तिल व लौंग युक्त जल पीपल के पेड़ पर चढ़ाना चाहिये। इसके बाद शनिदेव की प्रतिमा के समीप बैठकर उनका ध्यान लगाते हुए मंत्रोच्चारण करना चाहिये। पूजा करने के बाद काले वस्त्र, काली वस्तुएं किसी गर

shukravar vrat katha in hindi ( santoshi mata ka vrat katha)

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शुक्रवार व्रत पूजा विधि (संतोषी माता) संतोषी माता का व्रत शुक्रवार को किया जाता है। शुक्रवार को सुर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि करके, मंदिर में जाकर ( या अपने घर पर संतोषी माता का चित्र या मुर्ति रखकर) संतोषी माता की पूजा करें । पूजा के समय एक कलश में ताजा स्वच्छ जल भरकर रखें। उस कलश पर एक पात्र रखें और उस पात्र में गुड़ और चने भरकर रखें। घी का दीपक जलाकर संतोषी माता की कथा सुनें या स्वयं पुस्तक पढ़कर उपस्थित भक्तजनों को व्रत्कथा सुनाएँ। संतोषी माता की व्रत कथा को सुनते अथवा दूसरों को सुनाते समय गुड़ और भूने हुए चने हाथ में रखें। व्रत्कथा समाप्त होने पर “संतोषी माता की जय” बोलकर उठें और हाथ में लिए हुए गुड़ और चने गाय को खिलाएँ। कलश पर रखे गए पात्र के गुड़ और चने को प्रसाद के रूप में उपस्थित सभी स्त्री-पुरुषों और बच्चों में बाँट दें। कलश के जल को घर के कोने-कोने में छिड़ककर घर को पवित्र करें। शेष बचे हुए जल को तुलसी के पौधे में डाल दें। शुक्रवार व्रत पूजा सामग्री  घी का दिया कलश पात्र चना गुड़ संतोषी माता की मूर्ति अथवा चित्र धूप संतोषी माँ की व्रत कथा: बहुत समय पहले की बात है। एक बुढि

Brahaspati ji ki aarti in hindi

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बृहस्पति जी की आरती  ॐ  जय बृहस्पति देवा, ऊँ जय वृहस्पति देवा,  छिन- छिन भोग लगाऊँ, कदली फल मेवा, ऊँ जय बृहस्पति देवा। ...  तुम पूरण परमात्मा, तुम अन्तर्यामी,  जगतपिता जगदीश्वर, तुम सबके स्वामी, ऊँ जय बृहस्पति देवा। ...  चरणामृत निज निर्मल, सब पातक हर्ता,  सकल मनोरथ दायक, कृपा करो, भर्ता, ऊँ जय बृहस्पति देवा। ...  तन, मन, धन अर्पण कर, जो जन शरण पड़े,  प्रभु प्रकट तब होकर, आकर द्घार खड़े, ऊँ जय बृहस्पति देवा। ...  दीनदयाल दयानिधि, भक्तन हितकारी,  पाप दोष सब हर्ता, भव बंधन हारी, ऊँ जय बृहस्पति देवा। ...  सकल मनोरथ दायक, सब संशय हारो,  विषय विकार मिटाओ, संतन सुखकारी, ऊँ जय बृहस्पति देवा। ...  जो कोई आरती तेरी, प्रेम सहत गावे,  जेठानन्द आनन्दकर, सो निश्चय पावे, ऊँ जय बृहस्पति देवा। ...  बृहस्पति जी की आरती समाप्तम 

Brahaspativar Vrat katha- Guruvar-Jupiter Planet

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बृहस्पतिवार व्रत कथा  गुरूवार या वीरवार को भगवान बृहस्पति की पूजा का विधान है| बृहस्पति देवता को बुद्धि और शिक्षा का देवता माना जाता है| गुरूवार को बृहस्पति देव की पूजा करने से धन, विद्या, पुत्र तथा मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है| परिवार में सुख तथा शांति रहती है| गुरूवार का व्रत जल्दी विवाह करने के लिये भी किया जाता है| बृहस्पतिवार व्रत  की विधि :  गुरूवार की पूजा करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि पूजा विधि-विधान के अनुसार हो| व्रत वाले दिन प्रात: काल उठकर बृहस्पति देव का पूजन करना चाहिए| वृ्हस्पति देव का पूजन पीली वस्तुएं, पीले फूल, चने की दान, पीली मिठाई, पीले चावल आदि का भोग लगाकर किया जाता है|  इस व्रत में केले का पूजन ही करें. कथा और पूजन के समय मन, कर्म और वचन से शुद्घ होकर मनोकामना पूर्ति के लिये वृहस्पतिदेव से प्रार्थना करनी चाहिए| दिन में एक समय ही भोजन करें| भोजन चने की दाल आदि का करें, नमक न खा‌एं, पीले वस्त्र पहनें, पीले फलों का प्रयोग करें, पीले चंदन से पूजन करें. पूजन के बाद भगवान बृहस्पति की कथा सुननी चाहिये|  बृहस्पतिवार व्रत कथा  एक बार किसी गांव में एक साहूकार रहता

Ganesh Visarjan Vidhi in hindi

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गणेश-गणपति विसर्जन | Ganesh Visarjan Vidhi  गणपती महोत्सव की यह धूम चतुर्थी से आरंभ होकर अनंत चतुर्दशी तक चलती है| हिन्दू शास्त्रों के अनुसार इस व्रत के फल इस व्रत के अनुसार प्राप्त होते हैं| भगवान श्री गणेश को जीवन की विध्न-बाधाएं हटाने वाला कहा गया है और श्री गणपति जी सभी कि मनोकामनाएं पूरी करते है| गणेशजी को सभी देवों में सबसे अधिक महत्व दिया गया है| कोई भी नया कार्य प्रारम्भ करने से पूर्व भगवान श्री गणेश को याद किया जाता है|  भाद्रपद मास की चतुर्थी से आरंभ भगवान गणेश उत्सव भाद्रपद मास की अनंत चतुर्दशी तक चलता है| दस दिन तक मनाए जाने वाले गणेश जन्मोत्सव का बहुत महत्व होता है| गणेश महोत्सव की धूम भारतवर्ष में देखी जा सकती है| इस महत्वपूर्ण पर्व के समय देश भर में गणेश जी के पंडालों को सजाया जाता है मूर्ति स्थापना के साथ गणेश जी का आहवान किया जाता है| सभी लोग भगवान गणेश जी की छोटी-बडी़ प्रतिमाओं की स्थापना अपने सामर्थ्य अनुसार घर या मंदिरों में करते हैं| भाद्रपद मास, शुक्ल पक्ष की चतुर्थी के दिन सिद्धि विनायक व्रत भक्ति और उल्ल्लास से पूर्ण होता है| इस पर्व की धूम चारों ओर दिखाई देती ह